चैतन्य महाप्रभु कौन थे और जाने उनकी शिक्षा और जुड़ी रोचक बातें
Chaitanya Mahaprabhu Biography in Hindi . 15वी सदी में जन्मे ये संत सगुण भक्ति मार्ग के बड़े संत थे . इन्हे भक्तिकाल के मुख्य कवियों में एक माना गया है .
इन्होने अपना जीवन पूर्ण रूप से कृष्ण भक्ति में लगा दिया . इन्होने बहुत से काव्य , भजन और मंत्र लिखे और यह झूम झूम कर कृष्ण भक्ति का प्रचार करते थे .
वृंदावन की महिमा का इन्होने बहुत उत्थान किया . आज हम इस आर्टिकल में चैतन्य महाप्रभु की जीवनी और उनके वैष्णव धर्म में योगदान को जानेंगे .
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चैतन्य महाप्रभु जन्म और बचपन
चैतन्य महाप्रभु का जन्म साल 1407 में बंगाल के गाँव महापुर में होलिका दहन अर्थात फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हुआ था . इनके पिता का नाम श्री जगन्नाथ मिश्र और माता का नाम शुची था . उन्होंने वैष्णव धर्म का खूब प्रचार किया अपने भजनों , गीतों , नृत्य और काव्य शास्त्रों के माध्यम से .
इन्हे बंगाल के लोग भगवान श्री कृष्णा और राधे रानी के मिश्र रूप का अवतार भी मानते है .
असामान्य जन्म
कोई शिशु अपनी माँ के गर्भ में 9 माह रहता है पर चैतन्य महाप्रभु अपनी माँ के गर्भ में 13 माह तक रहे . यह बात उन्हें चमत्कारी मनाती है . इसके साथ ही उनकी माँ पहले आठ कन्याओ को जन्म दी थी पर उनमे से कोई नही बच पाई थी .
इसके बाद उन्हें फिर एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम विश्वरूप रखा गया . विश्वरूप के जन्म के बाद फिर से इन्हे पुत्र रत्न प्राप्त हुआ जिसका नाम विश्वंभर रखा गया .
पंडित लोग इस बच्चे की कुंडली देखकर चौंक गये , उन्हें पता चल गया है कि यह बच्चा बड़ा होकर एक महापुरुष बनेगा और अपना पूरा जीवन कृष्ण भक्ति और हरीकीर्तन में लगा देगा . पंडितो की यह बात फिर सही साबित हुई .
चैतन्य महाप्रभु के दो विवाह
चैतन्य जब 15 , 16 साल के थे तब उनका विवाह लक्ष्मी नाम की लड़की से कर दिया गया . पर लक्ष्मी की कुछ दिनों बाद सांप काटने के कारण मृत्यु हो गयी . उसके बाद उनका विवाह विष्णुप्रिया के साथ हुआ .
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24 वर्ष की उम्र में जागी कृष्ण भक्ति
जब वे 24 साल के थे तब उन्हें पिता की मृत्यु हो गयी और वे अपने पिता का श्राद्ध करने गया धाम गये . यहा उनकी भेंट ईश्वरपूरी नाम के एक संत से हुई जो कृष्ण कृष्ण भजते रहते थे . वे संत चैतन्य जी के जगन में समा गये और उन्होंने उन्हें अपना गुरु बना लिया . इसके बाद उनका जीवन ही बदल गया और वे कृष्ण को हर क्षण याद रखने लगे . उन्होंने गृहस्थ जीवन से सन्यास ले लिया .
कृष्ण प्रेम में पागल
चैतन्य जब 20 वर्ष से ऊपर हुए तो उन्हें अहसास हुआ कि यह जीवन सिर्फ और सिर्फ कृष्ण भक्ति और उनके गुणगान के लिए हुआ है . इसके अलावा दुसरे सारे कर्म व्यर्थ है . बस फिर वे कृष्ण के पूर्ण दीवाने हो गये .
बस फिर उनके जीवन में उठते जागते सोते खाते समय श्री कृष्ण ही मन और दिमाग में रहता था . वे भजन गाते , नाचते रमते और अपनी दीवानगी की सारी सीमाए तोड़ देते . जो भी उन्हें देखता , वो उनका दीवाना हो जाता है और उनका शिष्य बन जाता था .
चैतन्य महाप्रभु का मुक्ति सूत्र
चैतन्य जी ने संसार को बताया कि ईश्वर एक ही है पर हम उन्हें अलग अलग नाम से पुकारते है . उन्होंने एक मुक्ति सूत्र भी दिया जिसमे उन्होंने कृष्ण राम को शामिल किया .
मुक्ति सूत्र है -कृष्ण केशव, कृष्ण केशव, कृष्ण केशव, पाहियाम। राम राघव, राम राघव, राम राघव, रक्षयाम॥
भाव : कृष्ण के चरणों में विराजमान , हे राम जी मेरी रक्षा करे.
32 अक्षरीय राम कृष्ण मंत्र
आप जो आज देश विदेश में यह मंत्र सुनते है :- हरे-कृष्ण, हरे-कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे। हरे-राम, हरे-राम, राम-राम, हरे-हरे .
यह मंत्र भी चैतन्य महाप्रभु की देन है . इसमे वैष्णव धर्म की शत प्रतिशता आपको दिखेगी . यहा हरे (विष्णु ) और उनके दो अवतार कृष्ण और राम की ही बात कही गयी है . तीनो को एक ही शक्ति बताया गया है .
चैतन्य महाप्रभु ने वृंदावन को फिर से उभारा
15वी सदी में लोग कृष्ण राधे की प्रेम स्थली वृंदावन को भूल चुके थे . कार्तिक पूर्णिमा के दिन वे वृंदावन आये थे . आज भी वृंदावन में उनके आगमन का उत्सव इस दिन मनाया जाता है . चैतन्य जी वृंदावन में रहे और यहा जगह जगह खोज करी और कृष्ण से जुड़ी जगहों का महत्व लोगो को बताया . यहा उन्होंने कई कीर्तन किये और भक्तो के नाचे गाये और वृंदावन की महिमा को लोगो के मन में बैठाया . इसके बाद वृंदावन फिर से कृष्ण भक्तो के लिए एक बहुत बड़ा धाम बन गया .
वृंदावन की आज जो प्रसिद्धि है उसमे चैतन्य जी का बहुत बड़ा हाथ है .
कृष्ण लोक गमन
कहते है कि चैतन्य महाप्रभु की अंतिम साँसे उड़ीसा के जगन्नाथ पूरी में ली थी. पूरी तरह से तो नही कह सकते पर इनके स्वर्ग गमन 1534 के आस पास हुआ था .
ऐसा कहा जाता है इनके धरती लोक से गमन भी एक चमत्कार से कम नही था . एक सुबह उन्हें अहसास हो गया था कि आज उनकी यात्रा का विराम है . वे शीघ्रता से जगन्नाथ पूरी मंदिर गये . मंदिर में प्रवेश करते ही द्वार अपने आप बंद हो गये . वे प्रभु के श्री विग्रह से लिप्त गये और जोर जोर से पुकारने लगे कि हे कृष्ण अब मुझे अपने अन्दर समा लो , आप ही अंतिम सत्य हो और मेरी आखिरी इच्छा आपका धाम ही है .
यह कह कर वे कृष्ण मूर्ति में विलीन हो गये . पुजारी ने यह जब अपनी आँखों से देखा तो वो भी बेहोश होकर गिर गये .
सारांश
- हमने आपको इस आर्टिकल में चैतन्य महाप्रभु की जीवन से जुड़ी रोचक बातें बताई जिससे आपने जाना कि वैष्णव धर्म के लिए प्रचार के लिए इन्होने कौनसे काम किये , क्यों ये आज कृष्ण भक्तो में इतने ज्यादा प्रसिद्ध है . आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी.
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