माता छिन्नमस्तिका कौन है और जाने उनके शक्तिपीठ के बारे में
Know About Goddess Chhinnmastika and her Famous shaktipeeth . नाम के अनुसार ही इस देवी का रूप है . छिन्न का अर्थ है काट कर अलग किया गया और मस्तिका का है अर्थ है सर . अर्थात छिन्नमस्तिका देवी वो देवी है जिसका सिर उसके धड से अलग किया गया है . यह तांत्रिको की पूज्य देवी है . माँ ने क्यों अपना शीश स्वयं काटा इसके पीछे एक बहुत ही ममतामय पौराणिक कथा है .
इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि कौन है माँ छिन्नमस्तिका और उनकी क्या कथा है .
कौन है माँ छिन्नमस्तिका
माँ का वो रूप जिसमे स्वयं माँ ने अपने शीश को काट दिया है और अपने मस्तक को छिन्न करने के कारण यह माँ छिन्न मस्तिका कहलाई यह माँ के दस महाविद्याओ में से एक है | उनकी गर्दन से लहू की तीन धार निकल रही है जो उनके दोनों और सहचरी और स्वयं पान कर रही है | देवी माँ के पैरो में कामदेव और रति पड़े हुए है |
भारत के झारखण्ड राज्य में रांची से लगभग 75 किमी की दुरी पर भैरवी नदी और दामोदर के संगम पर रामगढ़ जिले में रजरप्पा जगह है , वही है मुख्य शक्तिपीठो में से एक माता छिन्नमस्तिका का मंदिर |
यह तांत्रिक पीठ है और माँ कामख्या तारापीठ की तरह तांत्रिको का धाम है | देवी माँ के भक्तो का मुख्य आस्था का केंद्र जहा हर नवरात्रि भक्तो की भारी संख्या माँ के दर्शन पाने आती है | इस मंदिर के अलावा यहा सूर्य , हनुमान शिव आदि भगवानो के दस मंदिर ओर भी है | यह मंदिर बहुत पुराना है और इसकी जानकरी वेदों पुराणों में भी मिलती है | दुर्गा सप्तशती में इस मंदिर की बात की गयी है |
आज भी बलि लगती है जानवरों की :
इस मंदिर में काली पूजा , मंगलवार और शनिवार को बकरों की बलि चढ़ाई जाती है बलि के बाद सिर पुजारी ले जाते है और धड बलि चढाने वाले को दे दी जाती है | यह चमत्कार है की बलि के दौहरान जो खून निकलता है उस पर मक्खी नही बैठती |
माँ छिन्नमस्तिका की उत्पत्ति की कथा
एक बार भगवती माँ अपनी दो सहचरियों के साथ नदी में स्नान कर रही थी | स्नान करते करते उनकी दोनों सहचरियो को भूख लगने लगी | भूख के कारण उनके चेहरे का रंग उड़ चूका था | उन दोनों ने माँ भगवती से उनकी भूख को शांत करने की विनती की |
माँ भगवती से उनकी यह हालत देखी नही जा रही थी | आस पास खाने पीने की भी कोई व्यवस्था नही थी | बस माँ का कलेजा भर गया | उन्होंने अपने शीश को तलवार से काट दिया और गर्दन के दोनों और खून की धार बहने लगी | माँ ने इन धारो से उन दोनों की भूख को शांत किया | एक तीसरी धार को माँ ने स्वयं पान किया |
अत: माँ अपने भक्तो में अति प्रिय हो गयी | जो दिल से माँ से कुछ मांगते है माँ उनके प्यार के लिए अपना शीश भी काट लेती है और अपना लहू पिला कर भी उनकी विनती पूरी करती है |
कब आती है छिन्नमस्तिका जयंती
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को माँ छिन्न मस्तिका की जयंती धूम धाम से मनाई जाती है | भक्त इस दिन माँ के जागरण और दुर्गा सप्तशती के पाठ करते है | मां के दरबार को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और नाना प्रकार के भोगो से माँ को भोग अर्पित किया जाता है |
सारांश
- माता छिन्नमस्तिका के प्रसिद्ध मंदिर की जानकारी आपने इस आर्टिकल में पाई जो एक बड़ा शक्तिपीठ मंदिर है . यह मंदिर झारखण्ड में है . इसके साथ ही अपने आपको माँ छिन्नमस्तिका की पौराणिक कहानी भी बताई . आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी.
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