भूखी माता का बहुत प्रसिद्ध मंदिर और कथा
Bhukhi Mata Mandir Story in Hindi उज्जैन में क्षिप्रा नदी के नरसिंह घाट से आगे प्राचीन कर्क राज मंदिर के पास भूखी माता का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। भूखी माता का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में सिंदूरी रंग में लिपटी हुई दो मूर्तियाँ के रूप में दो देवियां विराजमान है। मान्यता है की ये दोनों बहने हैं। इसमे से एक भूखी माता जो दूसरी देवी का नाम धूमावती है | दोनों देवियों के नाम पर इस मंदिर को भुवनेश्वरी भूखी माता मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर में रोज सुबह शाम भव्य आरती की जाती है | नवरात्रि पर्व पर माता को मदिरा का भोग भी अर्पित किया जाता है | यहा पहले पशु बलि भी दी जाती थी . इस मंदिर से जुड़े अनोखे रहस्य और चौंकाने वाले बातें है जो हम यहा बताने वाले है .
कहाँ है भूखी माता का मंदिर
यह मंदिर शिप्रा नदी के भूखी घाट के पास ही स्तिथ है . मंदिर के मुख्य द्वार के बायीं तरफ ही शिप्रा नदी बह रही है . यह घाट भी राम घाट के पास ही दायी तरफ है .
जैसे शिवलिंग के सामने नंदी विराजमान होते है वैसे ही यहा भूखी माता के सामने पीले रंग के शेर की प्रतिमा विराजमान है . माँ भूखी और उनकी बहिन भुवनेश्वरी का श्रंगार सिंदूरी रंग में किया गया है और उन दोनों ने चांदी के मुकुट धारण किये हुए है . सिर्फ दोनों के सिर ही प्रतिमा में दिखाई देते है और दोनों मूर्तियों का रूप एक जैसा है .
भूखी माता मंदिर की कथा
Bhukhi Mata Story आप भी इस माता का नाम भूखी सुनकर अचरज में पड़ गये होंगे पर दोस्तों इन्हे यह नाम एक कथा के कारण ही मिला है . यह कहानी राजा विक्रमादित्य और उनके राज्य के नौजवानों से जुड़ी हुई है .
हर दिन लगती थी नर बलि
मंदिर की कथा राजा विक्रमादित्य के राजा बनने की किंवदंती से संबंधित हैं। माना जाता है कि माता को हर दिन उनकी इच्छा के कारण नौजवान लड़के की बलि दी जाती थी। उस लड़के को उज्जैन का राती घोषित किया जाता था। उसके पश्चात माता भूखी देवी उसे खा जाती थी। हर दिन लगने वाली इस प्रथा से अवंतिका में जवान लड़को की संख्या कम होने लगी |
माँ के विलाप पर आगे आये विक्रमादित्य
ऐसे ही एक दिन एक बार अपने पुत्र की बलि होने की बात सुनकर रो रही थी | विक्रमादित्य ने उन्हें हिम्मत बंधाई और उसके पुत्र की जगह स्वयं भूखी माता के पास जाने का वचन दिया | विक्रमादित्य ने पुरे शहर में सुगंधित भोजन को जगह जगह बनवाया | भूखी माता जिस स्थान से बलि प्राप्त करती है उस भोजशाला को सम्पूर्ण रूप से अनेको व्यंजनों से सजाया गया | एक पुतला मिठाईयों से निर्मित कर लेटा दिया गया | इस तरह के अनेको शाकाहारी व्यंजन प्राप्त का भूखी माता की भूख पूर्णत: शांत हो गयी |
विक्रमादित्यने माँगा वरदान
वे इस सभी आयोजन के पीछे मुख्य किरदार निभाने वाले विक्रमादित्य से अत्यंत प्रसन्न हुई और वरदान मांगने के लिए कहा | विक्रमादित्य ने देवी से विनती की , “आप , नदी के दुसरे तट पर रहे और नर बलि कभी ना ले “| तब से भूखी देवी ने नरबली लेना बंद किया |
देवी ने राजा की चतुराई से प्रसन्न होकर राजा विक्रमादित्य को आशीर्वाद दिया की वे उज्जैन के महान राजा के रूप में विख्यात होंगे | इसके बाद गाँव वालो ने राजा के साथ मिलकर इस भूखी माता मंदिर का निर्माण किया और नित्य पूजा अर्चना करने लगे . उसके बाद कभी भी माता ने उन गाँव वालो को परेशान नही किया बल्कि उन पर प्रसन्न ही रही .
ढोल नगारो से होती है आरती
यहा की आरती बहुत ही प्रसिद्ध है जो ढोल नगारो के बीच की जाती है . इस आरती में शामिल होकर भक्तो को अलग ही अनुभव होता है . मंदिर में सुबह और शाम यह आरती की जाती है .
महाअष्टमी को लगता है मदिरे का भोग
महाअष्टमी को माता के मदिरे का भोग लगता है . माँ को मदिरा पिलाई जाती है . साथ ही नवरात्रि पर बाहर लगे दीपमालाओ में दीपक जलाये जाते है .
सारांश
- भूखी माता मंदिर उज्जैन की क्या कहानी है , क्यों यहा की माता का नाम भूखी रखा गया है . आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी.
Post a Comment