एकादशी व्रत का उद्यापन कैसे किया जाता है
एकादशी भगवान विष्णु और श्री कृष्ण को समर्पित दिन है जिसे ग्यारस भी कहते है | यह महीने में २ बार आती है एक शुक्ल पक्ष की और दूसरी कृष्ण पक्ष की | शुक्ल पक्ष में आने वाली ग्यारस (एकादशी) पर पूजा व्रत और विष्णु गुणगान का अत्यंत महत्व है | एकादशी व्रत के नियम का पालन करते हुए व्रतधारी को एकादशी का उद्यापन करना होता है | उद्यापन किए बिना कोई व्रत सिद्ध नहीं होता, अतः नियमित रूप से एकादशियों का व्रत करने वालों को किसी विद्वान ब्राह्मण की देख-रेख में उद्यापन अवश्य करना चाहिए।
एकादशी व्रत का उद्यापन करना बहुत जरुरी होता है क्योकी इसके बिना कष्ट सहित किये गये व्रत का भी हमें फल प्राप्त नही होता है . जब साल भर की एकादशी का व्रत हो जाये तब आपको एकादशी का व्रत करके फिर द्वादशी पर ब्राह्मणों को भोजन कराकर ही अपना व्रत खोलना चाहिए .
आगे उद्यापन कैसे करना है उसके लिए किसी ज्ञानी और कर्मकांडी पंडित को चुन ले और उनके बताये अनुसार एकादशी व्रत का उद्यापन करे .
एकादशी व्रत के उद्यापन की विधि
(१) वर्ष पूरा होने पर एकादशी व्रत का उद्यापन करे। मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में इसका उद्यापन किया जाता है ।
(२) उद्यापन मेँ बारह विद्वान् ब्राह्मणों और पत्नीसहित आचार्य को आमन्त्रित करना चाहिये।
(३) यजमान स्नान आदि से शुद्ध होकर श्रद्धा एवं इंद्रिय संयम सहित आचार्य आदि का पूजन करे ।
(४) आचार्य को चाहिये कि उत्तम रंगों से चक्र-कमल से संयुक्त सर्वतोभद्रमण्डल बनाये। जिसे श्वेत वस्त्र से आवेष्टित करे। फिर पञ्चपल्लव एवं यथासंभव पञ्चरत्न से युक्त कर्पूर और अगरु की सुगन्ध से वासित जलपूर्ण कलश को लाल कपड़े से वेष्टित करके उसके ऊपर ताँबेका पूर्णपात्र रखे। उस कलश को पुष्पमालाओँ से भी वेष्टित करे।
(५) इस कलश को सर्वतोभद्रमण्डलके ऊपर स्थापित करके कलश पर श्री लक्ष्मीनारायण मूर्ति की स्थापना करे।
(६) सर्वतोभद्रमण्डल मेँ बारह महीनों के अधिपतियों की स्थापना करके उनका पूजन करना चाहिये ।
(७) मण्डल के पूर्वभाग में शुभ शङ्ख की स्थापना करे और कहे- ‘हे पाञ्चजन्य! आप पहले समुद्र से उत्पन्न हुए, फिर भगवान विष्णु ने अपने हाथों मेँ आपको धारण किया, सम्पूर्ण देवताओं ने आपके रूप को सँवारा है। आपको नमस्कार है।‘
(८) सर्वतोभद्रमण्डल के उत्तर में हवन के लिये वेदी बनाये और संकल्पपूर्वक वेदोक्त मन्त्रों से हवन करे ।
(९) फिर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापन, पूजन और परिक्रमा करे। ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराकर नमस्कार करे।
(१०) तदुपरान्त ब्राह्मणों और आचार्य वैदिक और विष्णु के मंत्र का जप करना चाहिये।
(११) जप के अन्त में कलश के ऊपर भगवान् विष्णु की स्थापना करनी चाहिये और विधिपूर्वक पूजा तथा स्तुति करे।
(१२) घृतयुक्त पायस की आहुति देने के बाद एक सौ पलाश की समिधाएँ घी मेँ डुबोकर हवन करे जो अंगूठे के सिरे से तर्जनी के सिरे तक लम्बाई की हों।
(१३) इसके बाद तिल की आहुतियां दी जानी चाहिये।
(१४) इस वैष्णव होम के बाद ग्रहयज्ञ [ नवग्रहों के मंत्रों द्वारा हवन] करे, इसमें भी समिधाहोम, चरुहोम और तिलहोम होना चाहिये।
(१५ ) हवन आदि के बाद दान पुण्य के कार्य संपन्न किये जाते है | पढ़े : किन चीजो का दान करने से मिलता है अधिक पूण्य
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सारांश
- एकादशी के व्रत का उद्यापन कैसे किया जाता है और उसकी विधि क्या है आइये जानते है . आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी.
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