दुर्वासा मुनि कौन थे ? क्या कहते है इनके बारे में शास्त्र
Durvasa Rishi Koun Hai . सतयुग , त्रेता और द्वापर युग सिद्ध महायोगी और चमत्कारी संत के रूप में इन्होने अपने कई भक्तो को उद्धार किया । शिवपुराण के अनुसार, दुर्वासा मुनि भी शिवजी के अंशावतार थे। दुर्वासा मुनि संत होने के बाद भी अपने अत्यंत क्रोध के लिए जाने जाते थे। इनसे पास ऐसी शक्तियां थी जो जीवन को स्वर्ग और नरक दोनों बना सकती थी | इनसे जुड़ी बहुत से पौराणिक कथाये शास्त्रों में बताई गयी है |
इस कारण त्यागे थे लक्ष्मण ने प्राण
– वाल्मीकि रामायण के अनुसार, एक दिन काल तपस्वी के रूप में अयोध्या आया। काल ने श्रीराम से कहा कि- यदि कोई हमें बात करता हुआ देखे तो आपको उसका वध करना होगा।
– श्रीराम ने काल को वचन दे दिया और लक्ष्मण को पहरे पर खड़ा कर दिया। तभी वहां महर्षि दुर्वासा आ गए। वे भी श्रीराम से मिलना चाहते थे।
– लक्ष्मण के बार-बार मना करने पर वे क्रोधित हो गए और बोलें कि- अगर इसी समय तुमने जाकर श्रीराम को मेरे आने के बारे में नहीं बताया तो मैं तुम्हारे पूरे राज्य को श्राप दे दूंगा।
– प्रजा का नाश न हो ये सोचकर लक्ष्मण ने श्रीराम को जाकर पूरी बात बता दी।जब श्रीराम ने ये बात महर्षि वशिष्ठ को बताई तो उन्होंने कहा कि- आप लक्ष्मण का त्याग कर दीजिए।
– साधु पुरुष का त्याग व वध एक ही समान है। श्रीराम ने ऐसा ही किया। श्रीराम द्वारा त्यागे जाने से दुखी होकर लक्ष्मण सीधे सरयू नदी के तट पर पहुंचे और योग क्रिया द्वारा अपना शरीर त्याग दिया।
इंद्र को दिया था श्राप
एक बार ऋषि दुर्वासा ने देवराज इंद्र को पारिजात फूलों की माला भेंट करी पर इंद्र ने अभिमान में उस माला को अपने हाथी ऐरावत को पहना दिया | कुछ देर बार उस हाथी ने उस माला को सूंड में लपेटकर फेंक दिया और पैरो से कुचल दिया । यह बात दुर्वासा को क्रोधित कर गयी और उन्होंने समस्त देवताओ को क्षीण होकर स्वर्ग से निकाले जाने का श्राप दे दिया तब असुरो ने स्वर्ग पर अपना राज कर लिया और देवता गण स्वर्ग से निकाले गये | अपने आप को अमर करने के लिए फिर उन्होंने दानवो के साथ मिलकर समुन्द्र मंथन किया |
कुंती को देवताओ के पुत्र प्राप्ति का वरदान
कुंती के आदर सत्कार से प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें देवताओ से पुत्र प्राप्ति का एक मंत्र दिया था | इसके जाप से कुंती ने सबसे पहले अविवाहित अवस्था में कर्ण को जन्म दिया | इसके लिए उन्होंने मंत्र से सूर्य देवता का आह्वान किया था | फिर बाद में विवाह के बाद उन्होंने यमराज का आह्वान कर युधिष्ठिर और वायु देव से भीम को जन्म दिया |
अपने श्राप के कारण मुसीबत में पड़ गये दुर्वासा
इक्ष्वांकु वंश के राजा अंबरीश विष्णु के परम भक्त थे और हर एकादशी पर विष्णु का व्रत रखते थे और फिर अगले दिन द्वादशी पर उसका पारण करते थे | एक बार द्वादशी पर अंबरीश ने एकादशी व्रत का पारण नही किया था और उनसे मिलने ऋषि दुर्वासा आ गये | उन्होंने अंबरीश को बताया कि वे स्नान कर आ रहे थे तब तक अपना व्रत नही खोले | अंबरीश ने तब ऋषि का इंतजार करना शुरू कर दिया पर बहुत देर तक ऋषि लौटे नही |
पारण का समय बीतने लगा अत: व्रत का संकल्प पूरा करने के लिए अंबरीश ने अपना व्रत उनकी अनउपस्थति ने खोल दिया | थोड़ी देर बार जब दुर्वासा मुनि आये और उन्हें पता चला की राजा ने व्रत खोल लिया है तो वे अत्यंत क्रोधित हो गये |
उन्होंने अपनी शक्ति से कृत्या राक्षसी को जन्म देकर अंबरीश को दंड देना चाहा | विष्णु के परम भक्त की रक्षा के लिए तब सुदर्शन चक्र आ गया और कृत्या का संहार कर दुर्वासा मुनि के पीछे पड़ गया | दुर्वासा अपनी जान बचाने के लिए अंबरीश से क्षमा मांगने लगे तब जाकर सुदर्शन चक्र शांत हुआ |
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