रूप चौदस पर क्यों यमराज और कृष्ण की पूजा
Narak Chaturdashi Par Sundarta Paane Ke Upay In Hindi
कार्तिक मास में कृष्णपक्ष की चतुदर्शी को रूप चौदस या नरक चतुर्दशी कहते हैं। इस पर्व के दुसरे नाम छोटी दिवाली या काली चौदस भी है। इस दिन की पूजा और स्नान नरक की पीडाओ से मुक्ति और काया को सौन्दर्य प्रदान करती है | यहा सुन्दरता आंतरिक और बाहरी दोनों तरफ की बताई गयी है |
रुप चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने का विधान है । स्नान से पहले उबटन के रूप में तिल के तेल से शरीर पर मसाज कर ले | फिर पवित्र और शुद्ध जल में अपामार्ग ( चिचड़ी ) पौधे की पत्तियाँ डाल कर स्नान करे | कहते है ऐसा करने से पापो का नाश होता है और यमराज प्रसन्न होते है | इसके बाद सौन्दर्य के देव श्री कृष्ण राधे के मंदिर जाकर उनके दर्शन करने चाहिए |
यमराज के लिए जलाये एक दक्षिण दिशा में चौमुखा दीपक
नरक चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज के नाम से एक दीपक संध्या को दक्षिण दिशा में जलाकर अपने पापो के लिए क्षमा याचना करनी चाहिए | यमराज के लिए निम्न मंत्र बोले :
यं यमराजाय नमः॥
इस दिन जो व्यक्ति यमराज के नाम का दीपक जलाता है उसे नरक की यातनाओ से मुक्ति मिलती है , उसकी अकाल मृत्यु टल जाती है .
नरक चतुर्दशी से जुड़ी यमराज की कथा
एक कथा के अनुसार एक बार एक राजा ने अपने पापो के क्षमन के लिए यमदूतो से मार्ग पूछा | तब यमदूतो ने उन्हें कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व तिल का तेल लगाकर स्नान करने और यमराज के लिए व्रत करने की बात कही | तब से इस तरह स्नान और व्रत करने की रीति नरक चतुर्दशी के दिन बन गयी |
नरक चतुर्दशी से जुड़ी कृष्ण की कथा
महाभारत में बताया गया है कि एक नरकासुर नाम का राक्षस था जो कुंवारी कन्याओ को हर लाता था और अपने साथ रखता था . तब कृष्ण ने उस नरकासुर का वध करके उन सभी 16 हजार से ज्यादा कन्याओ को उससे मुक्त करवाया था .
कन्याओ ने कहा कि वे इस राक्षस के शरण में कई दिनों तक रह चुकी है अत: समाज में कोई हमने शादी नही करेगा , और हमारा जीवन आगे बहुत कठिन हो जायेगा . तब श्री कृष्ण ने उन सभी 16 हजार कन्याओ से विवाह कर लिया . जिस दिन कृष्ण ने उस नरकासुर का वध किया था वो दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का था . अत: इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है .
इस दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है .
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