क्यों मनाते हैं दशहरा ? पौराणिक महत्व और महिमा
Story Behind Hindu Festival Dussehra – दशहरे को मनाने के पीछे की कहानी
अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है दशहरा त्योहार जिसे विजयदशमी भी कहा जाता है | हमारे शास्त्र और पुराणों में इस पर्व का महत्व और महिमा का गुणगान किया गया है | इसे असत्य पर जीत के रूप में मनाया जाता है | इसे सम्पूर्ण भारत में उत्साह और धार्मिक निष्ठा के साथ मनाया जाता है। दशहरा के 10 दिन पहले से ही राम लीला आयोजित की जाती है जिसमे रामायण की कहानी को मंच पर कलाकार प्रस्तुत करते है | अंतिम दिन दशहरे पर राम जी लंकापति रावण , कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतलो का वध करते है | भारत में जगह जगह रावण के पुतलो को जलाकर श्री राम के जयकारो के साथ यह उत्सव मनाया जाता है | लोग एक दुसरे को दशहरा बधाई सन्देश भेजते है |
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दशहरा के दिन विष्णु के अवतार श्री राम ने लंकापति रावण का वध करके धर्म को विजय दिलवाई थी | विजयदशमी के दिन ही शक्ति रूपी दुर्गा ने महिषासूर का वध किया था | अत: यह दिन धर्म की विजय के दिन के रूप में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है | हमारे हिन्दू धर्म में इस दिन को लेकर हम अपने अन्दर बैठे लोभ लालच , झूठ अंहकार आदि बुराई को खत्म करने का संकल्प लेते है |
विजय दशमी के दिन शमी के पत्तों का महत्व
एक पौराणिक कथा के अनुसार-एक बार एक राजा ने अपने राज्य में एक मंदिर बनवाया और उस मंदिर में भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा कर भगवान की स्थापना करने के लिए एक ब्राम्हाण को बुलाया। प्राण-प्रतिष्ठा कर भगवान की स्थापना करने के बाद राजा ने ब्राम्हान से पूछा कि- हे ब्रम्हान देव आपको दक्षिणा के रूप में क्या दूं? ब्राम्हन ने कहा- राजन मुझे लाख स्वर्ण मुद्राए चाहिए। ब्राम्हण की दक्षिणा सुनकर राजा को बडी चिंता हुई क्योंकि राजा के पास देने के लिए इतनी स्वर्ण मुद्राऐं नहीं थीं और ब्राम्हण को उसकी मांगी गई दक्षिणा दिए बिना विदा करना भी ठीक नहीं था। इसलिए राजा ने ब्राम्हण को उस दिन विदा नहीं किया बल्कि अपने मेहमान भवन में ही रात ठहरने की व्यवस्था कर दी।
ब्राम्हण की दक्षिणा
राजा ब्राम्हण की दक्षिणा देने के संदर्भ में स्वयं काफी चिन्ता में था कि आखिर वह किस प्रकार से ब्राम्हण की दक्षिणा पूरी करे। यही सोंचते-सोंचते व भगवान से प्रार्थना करते-करते उसकी आंख लग गई। जैसे ही राजा की आंख लगी, उसे एक स्वपन आया जिसमें भगवान प्रकट होकर उसे कहते हैं- अभी उठो और जाकर जितने हो सकें उतने शमी के पत्ते अपने घर ले आओ। तुम्हारी समस्या का समाधान हो जाएगा।
शमी के पत्ते बन गये सोने के पत्ते
अचानक ही राजा की नींद खुल गई। उसे स्वप्न पर विश्वास तो नही हुआ , पर फिर भी उसने शमी के पत्ते को लाने की बात ठान ली | सो वह रात में जाकर ढेर सारे शमी के पत्ते ले आया। जब सुबह हुई तो राजा ने देखा कि वे सभी शमी के पत्ते, स्वर्ण के पत्ते बन गए थे। राजा ने उन स्वर्ण के पत्तों से ब्राम्हण की दक्षिणा पूरी कर उसे विदा किया। जिस दिन राजा शमी के पत्ते अपने घर लाया था, उस दिन विजय-दशमी थी, इसलिए तभी से ये मान्यता हो गई कि विजय-दशमी की रात शमी के पत्ते घर लाने से घर में सोने का आगमन होता है।
बहुत सी जगह पर शमी के पौधे की दशहरे पर पूजा अर्चना की जाती है .
विशेष -दशहरा के दिन जो भी जातक शमी पत्तियों को अपने घर लायेगा उसके घर में सुख व समृद्धि बनी रहेगी।
सारांश
- दशहरे का हिन्दू धर्म में महत्व और इसको मनाये जाने के पीछे क्या पौराणिक कथा है , यह हमने आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताया है . आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी .
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