क्या आप को पता है रत्न की उत्पति कैसे हुई ?

रत्न बेशकीमती विशेष रंग के पत्थर ही होते है पर इसकी सुन्दरता बहुत अच्छी होती है . ये दुर्लभ होते है अत: इनकी दुर्लभता और सुन्दरता ही इनकी कीमत बढ़ाते है . 

क्या आपने कभी सोचा की बेशकीमती रत्न की उत्पति कैसे हुई ? यह कैसे बनते है ? आइये आज जानते है इनके बनने की कहानी |

ratn utpati kaise hui


रत्न क्या होता है और इनकी कैसे हुई  उत्पति




रत्न आकर्षक खनिज का एक टुकड़ा होता है जो कटाई और पॉलिश करने के बाद गहने और अन्य अलंकरण या ज्योतिष शास्त्र में अशुभ ग्रहों के प्रभाव को कम करने एवं चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है। राशि के अनुसार रत्न पहनना भी ज्योतिषशास्त्री बताते है |

बहुत से रत्न ठोस पत्थर के होते हैं, लेकिन कुछ नरम पत्थर के भी होते हैं। रत्न क़ीमती पत्थर को कहा जाता है। अपनी सुंदरता की वजह से यह क़ीमती होते हैं। रत्न अपनी चमक और अन्य भौतिक गुणों के सौंदर्य की वजह से गहने में उपयोग किया जाता है। पत्थर, काटने और पॉलिश से रत्नों को एक नया रूप और रंग दिया जाता है और इसी रूप और रंग की वजह से यह रत्न गहनों को और भी आकर्षक बनाते हैं। रत्न का रंग ही उसकी सबसे स्पष्ट और आकर्षक विशेषता है। रत्नों को गर्म कर के उसके रंग की स्पष्टता बढ़ाई जाती है।रत्न कोई भी हो अपने आपमें प्रभावशाली होता है। मनुष्य अनादिकाल से ही रत्नों की तरफ आकर्षित रहा है, वर्तमान में भी है तथा भविष्य में भी रहेगा। रत्न शरीर की शोभा आभूषणों के रूप में तो बढ़ाते ही हैं और रत्न अपनी दैवीय शक्ति के प्रभाव के कारण रोगों का निवारण भी करते हैं। इन रत्नों से जहाँ स्वयं को सजाने-सँवारने की स्पर्धा लोगों में पाई जाती है वहीं संपन्नता के प्रतीक ये अनमोल रत्न अपने आकर्षण तथा उत्कृष्टता से सबको मोहित कर पूरे विश्व से बखाने जाते हैं।रत्न और जवाहरात के नाम से जाने हुए ये खनिज पदार्थ विश्व की बहुमूल्य राशी हैं, जो युगों से अगणित मनों को मोहते हुए अपनी महत्ता बनाए हुए हैं।

रत्न एक क़िस्म के पत्थर ही होते हैं, लेकिन सभी पत्थर रत्न नहीं कहे जाते। पत्थर और रत्न में कुछ फ़र्क़ होता है। यदि इस फ़र्क़ को बेहतर ढंग से समझ लिया जाए तो हम रत्न को पत्थरों से छाँटकर निकाल सकते हैं। उनकी शिनाख़्त कर सकते हैं और फिर अपने दैनिक जीवन में उनका बेहतर प्रयोग कर सकते हैं। यदि ऐसा न करके हम बिना सोचे-समझे रत्नों का इस्तेमाल करते हैं तो उल्टा असर पड़ता है। ऐसी स्थिति में हमें नुक़सान भी उठाना पड़ सकता है।इसलिए रत्नों का उपयोग जांच-परखकर तथा सोच-विचारकर करना चाहिए। कुछ पत्थर या पदार्थों के गुण, चरित्र एवं विशेषताएँ ऐसी होती हैं कि उन्हें देखते ही रत्न कह दिया जाता है, जैसे-हीरा, माणिक्य, वैदूर्य, नीलम, पुखराज, पन्ना आदि को लोग रत्न के नाम से पुकारते हैं। वैसे वास्तव में ये सारे पत्थर ही हैं, लेकिन बेशक़ीमती पत्थर। ‘रत्न’ का विशेष अर्थ श्रेष्ठत्व भी है। इसी वजह से किसी ख़ास व्यक्ति को उसके महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए ‘रत्न’ शब्द से विभूषित किया जाता है।

प्राचीनकाल से ही रत्न का अर्थ-भूगर्भ या समुद्र तल से प्राप्त होने वाले हीरा, मोती, माणिक्य आदि समझा जाता रहा है। रत्न भाग्य-परिवर्तन में शीघ्रातिशीघ्र अपना प्रभाव दिखाता है।

ग्रह को कैसे प्रभावित करते है रत्न

दरअसल, पृथ्वी के अन्दर लाखों वर्षों तक पड़े रहने के कारण उसमें पृथ्वी का चुम्बकत्व तथा तेज़त्व आ जाता है। पृथ्वी के जिस क्षेत्र में जिस ग्रह का असर अधिक होता है, उस क्षेत्र के आसपास उस ग्रह से सम्बन्धित रत्न अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। वास्तव में पृथ्वी ग्रहों के संयोग से अपने अन्दर रत्नों का निर्माण करती है। अत: इसे "रत्नग" भी कहा जाता है।

मुख्य रत्न कौनसे होते है 

हीरा :- यह सबसे महंगा रत्न है जो बहुत ही कीमती होता है . कारण है कि यह बहुत ही दुर्लभ मिलता है . इसके कैरट के ऊपर इसकी कीमत होती है . यह शुक्र ग्रह से जुड़ा हुआ है . हीरे को तर्जनी अंगुली में पहना जाता है . क्योकि तर्जनी अंगुली के निचे ही शुक्र पर्वत हथेली में होता है . उस पर्वत पर अपना दवाब बनाने के लिए ही हीरे को पहना जाता है . 

मोती :-  चन्द्र देवता के दोषों को दूर कर उनकी कृपा प्राप्ति के लिए मोती को पहना जाता है . 


माणिक :- यह सूर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए पहना जाता है . 


पन्ना :- बुध ग्रह की शांति के लिए पन्ना पहनना चाहिए .


पुखराज :- गुरु ग्रह की शांति के लिए पुखराज रत्न को सोने की अंगूठी में पहनने की बात बताई गयी है . 


नीलम :- शनि दोष को दूर करने के लिए नीलम को धारण करना चाहिए . यह बहुत ही सक्रीय रत्न है अत: पूरी जानकारी के द्वारा ही इसे पहनना चाहिए . गलत धारण करने से यह दोष भी उत्पन्न कर देता है . इसे लोहे का व्यवसाय करने वाले और राजनेता लोग पहनते है . 


गोमेद :- राहू के दोषों को शांत करने के लिए गोमेद पहनना चाहिए . इसे कनिष्ठा अंगुली में पहना जाता है . इसे जादू करने वाले , तंत्र मंत्र करने वाले , जुआ सत्ता लगाने वाले काम में लेते है .  


लहसुनियाँ :-  यह शत्रुओ को हराने वाला और आपको उच्चता दिलाने वाला रत्न है . पर कभी भी इस लहसुनियाँ रत्न को हीरे के साथ नही पहनना चाहिए . इसे पहनने के लिए सबसे उत्तम अंगुली तर्जनी की मांगी गयी है . 



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