आसन शरीर और पूजा स्थल की शुद्धि के लिए मंत्र
हिन्दू धार्मिक शास्त्रों में पूजा से जुड़े कुछ अहम नियम बताये गये है | इस नियमो के साथ पूजा अर्चना करने से पूजा जरुर पूर्ण होती है | इसी क्रम में स्नान आदि के बाद शरीर और पूजा स्थल की शुद्धि के लिए शुद्धिकरण मंत्र का उच्चारण किया जाता है | फिर संकल्प और आचमन करने का प्रावधान है |
मंत्र शब्द मन +त्र के योग से बना है | अर्थात शक्तिशाली अक्षरों से उत्पन्न शक्ति जो मन से बारम्बार जपी जाए ही मंत्र है | लिंग भेद आधार पर मंत्र तीन तरह के है | देवी मंत्र के अंत में स्वाहा , देवता मंत्र के अंत में हुम् फट और नपुंसक मन्त्रों के अंत में “नमः ” लगता है |
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शुद्धिकरण मंत्र
पूजा अर्चना से पहले शरीर , आसन और पूजा स्थान की शुद्धि के लिए एक मंत्र बताया गया है जिसे शुद्धिकरण मंत्र बोला जाता है | यह निम्न तरह है |
ऊॅँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
मंत्र जप की विधि
इस मंत्र से शुद्धिकरण करने के लिए 3 बार हाथ में जल लेकर मंत्र का मनन जप करे और जल छोड़ दे | 3 बार जप करते समय एक बार अपने शरीर का , दूसरी बार आसन का , तीसरी बार पूजा स्थल का ध्यान करे |
आसन की शुद्धि
ॐ पृथ्वि! त्वया धृता लोका देवि ! त्वं विष्णुना धृता।त्वं च धारय मां देवि ! पवित्रां कुरु चासनम्।।
इस मंत्र को पढ़कर अपने आसन पर जल के छिडके डाले . यहा धरती माता से अपने आसन की शुद्धि की विनती की जा रही है .
मंत्र जप के नियम और जरुरी बातें
क्यों किया जाता था शरीर और पूजा स्थल का शुद्धिकरण
पुराने समय से जब भी साधू संत पूजा हवन यज्ञ आदि धार्मिक कार्य करते थे तो उनके उन कामो में विध्न देने के लिए बुरी शक्तियां आया करती थी और विध्न डालती थी . ऐसी बुरी शक्तियों को रोकने के लिए साधू संत ऋषि मुनि अपने आसन और पूजा स्थल के चारो तरफ एक सुरक्षा घेरा तैयार कर देते थे .
आज भी बुरी शक्तियां पूजा पाठ मंत्र जप में विध्न डालने आये तो उसके बचाव के लिए शुद्धिकरण मंत्र बोलना जरुरी होता है .
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