बछ बारस गोवत्स द्वादशी : कैसे करें गाय का पूजन
Know Cow Worship Method On Occasion Of Bachh Baras – Govatsa Dwadashi
गोवत्स द्वादशी का महत्व
प्रतिवर्ष आने वाली भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को बछ बारस या गोवत्स द्वादशी कहते हैं । यह पर्व कृष्ण जन्माष्टमी के चार दिन बाद आता है । गाय का हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्व है , इसमे सभी 33 कोटि देवी देवताओ का वास बताया गया है । इस दिन पुत्रवती महिलाएं गाय व बछ (बछड़ों ) का पूजन करती हैं। इस दिन कदापि गेहूं का उपयोग नहीं करते और ना ही चाकू से कटी हुई चीजे खाते है । स्थानीय तौर पर मक्का , ज्वार या बाजरे का उपयोग किया जा सकता है।
इस पर्व को भारत में अलग अलग विधि से मनाया जाता है पर एक बात कॉमन यह है कि इस दिन गौ माँ और उसके बछड़े की पूजा की जाती है ।
– बछ बारस के दिन सुबह व्रतधारी महिलाओ को सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करने चाहिए ।
– इसके बाद दूध देने वाली गाय और उसके बछडे़ को स्नान कराएं या शुद्ध पानी के छींटे दे ।
– अब दोनों को नया वस्त्र और पुष्प माला पहनाये ।
गाय और बछड़े के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं और उनके सींगों का श्रंगार करे ।
– अब तांबे के पात्र में अक्षत (चावल ), तिल, जल, सुगंध तथा फूलों को मिला लें। अब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ प्रक्षालन करें।
बछ बारस या गोवत्स द्वादशी की पौराणिक कहानी
मंत्र-
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
– गाय माता के चरणों में लगी मिट्टी से अपने मस्तिष्क पर तिलक लगाएं जो भाग्योदय कराने वाला होता है ।
– गौमाता का पूजन करने के बाद बछ बारस गोवत्स द्वादशी की कथा सुनें।
– इस दिन व्रत रखकर संध्या को भोजन ग्रहण करें।
– मोठ, बाजरा पर रुपया रखकर अपनी सासू माँ को दें।
– इस दिन बाजरे , मक्का , मुंग से बनी चीजे ही खाएं।
– इस दिन गेंहू की चीजो का , गाय के दूध, दही व चावल का सेवन न करें।
– इस पर्व पर सुई का भी प्रयोग नही करना चाहिए ।
आस पास गाय नही मिले तो
ऐसा केस बहुत कम होता है फिर भी यदि ऐसा हो तो गीली मिट्टी से गाय-बछडे़ की मूर्तियां बनाकर उपरोक्त विधि अनुसार पूजा करे |
सारांश
- तो आपने जाना की गोवत्स द्वादशी का क्या महत्व है और कैसे हमें इस दिन गौ माता की पूजा अर्चना करनी चाहिए . आशा करता हूँ कि आपको यह आर्टिकल जरुर पसंद आया होगा .
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