दुर्गा सप्तशती अध्याय 7 | चण्ड मुण्ड वध कथा

दुर्गा सप्तशती का पाठ करना भगवती माता की कृपा दिलाता है . आज हम इस अध्याय 7 में जानेंगे कि हिमालय पर जब चण्ड मुण्ड माँ भगवती को अपनी सेना के निहारते है तो किस तरह माँ की ज्वालामय अग्नि से माँ काली का जन्म होता है और चण्ड मुण्ड का संहार किया जाता है . 

चण्ड मुण्ड का भगवती को देखना  

दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो आते है तो देखते है कि  माँ कात्यायनी जो की बहुत ही सुन्दर है , वे रत्नजडित सिंहासन पर विराजित है . उनके पैरो के निचे कमल शोभायमान है . उनके माथे पर अर्ध चन्द्र सुशोभित हो रहा है . उनके वस्त्र लाल है और उनके हाथो में शंख और नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्र है . वे आठ भुजाओ वाली सिंह पर भी सवार है . 

Durga Saptshati

 चण्ड  मुण्ड अपनी विशाल महाकाय सेना के साथ जब देवी को देखते है तो वो उन्हें फूलो की तरह कोमल प्रतीत होती है . पर वे मंद बुद्धि यह नही जानते है कि यह तो उनकी काल है . 

अपने शत्रुओ की दुष्ट भावना को देखकर जब माँ थोडा सा क्रोधित होती है तो उनके मुख मंडल पर कालिमा आ जाती है , इस कालिमा से पूरा आसमान अंधकार में हो जाता है . आँखों में सूर्य रूपी क्रोधाग्नि दमक पड़ती है . 

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 महादेवी की भृकुटी के तेज से उत्पन्न कालिका देवी उत्पन्न हुई . उनके हाथ में खड्ग और पाश था , शरीर पर बाघ की खाली पहने वो रक्त की प्यासी थी . शरीर पर मांस नही था बस हड्डियों का ढांचा था . गले में नर मुंडो की माला धारण कर वो बहुत ही विकराल लग रही थी . उनकी गर्जना बिजली गिरने की तरह थी .  उन्होंने उन दैत्यों का संहार करके जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें काली को वर दिया कि तुमने चण्ड -मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में चामुण्डा देवी के नाम से विख्यात हो जाओगी। 

मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरुप को चामुंडा रूप में पूजते हैं।


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