दुर्गा माँ द्वारा महिषासुर वध - दुर्गा सप्तशती अध्याय 2 और 3
रम्भासुर नामक दैत्य का महिषासुर नामक पुत्र था, जिसने घोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया, और उनसे वरदान पाया की वो सिर्फ सिर्फ एक स्त्री के ही हाथों से मारा जा सके । ना ही कोई देवता ना ही सुर ना ही असुर न ही मानव उसे मार सके | वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग के साथ साथ तीनो लोको को जीत लिया । देवता ब्रह्मा जी और विष्णु जी सहित शिव जी के पास आये और अपनी दुःख भरी वेदना सुनाई | यह सुनकर त्रिदेव क्रोध में भर गये | ।
माँ कात्यायनी का जन्म
शिव के क्रोधित मुखमंडल से एक तेज निकला, और तब ब्रह्मा जी और विष्णु जी सहित सब देवताओं से तेज उत्पन्न हुआ, जिसने स्त्री वेश धारण किया , जो दुर्गा देवी थीं । देवताओं ने अति हर्षित हो कर माँ कात्यायनी को आयुध एवं आभूषण आदि प्रदान किये । शिव जी ने उन्हें अपना त्रिशूल दिया, विष्णु जी ने चक्र तो इंद्र ने वज्र । इस तरह समस्त देवताओ ने अपना शस्त्र और तेज से दुर्गा माँ को अनुपम और महा शक्तिया प्रदान की |
आयुध व् आभूषणों से सुसज्जित चंडिका ने जोरदार अट्टहास किया जिसकी गर्जना सुन महिषासुर अपनी सेना ले युद्ध करने पहुंचा । राक्षसों ने अपने शक्तिशाली अस्त्र शस्त्र चलाने आरम्भ किये जो माँ के सामने तुच्छ तिनके के समान साबित हुए | माँ जगदम्बे जी सवारी सिंह गरज गरज कर सब और असुरों को मारने लगा और युद्ध का मैदान लहू लुहान हो गया । देवी और उनके सिंह से देखते ही देखते दैत्यों का संहार कर दिया | महिषासुर के दैत्य सेनापति भी मारे जा चुके थे ।
महिषासुर मर्दिनी कहलाई
इस बीच महिषासुर ने अनेको मायावी रूप बनाकर माँ के साथ युद्ध किया पर हर बार उसके हाथ हार ही लगी | कभी वो भैस कभी हाथी तो कभी सिंह बनके देवी से लड़ने लगा | इस बार फिर अपने मुख्य रूप भैस के रूप में असुर में तब्दील हुआ पर इस बार देवी ने उसके गर्दन पर त्रिशूल से वार करके उसका अंत कर दिया | इस तरह माँ भगवती महिषासुर मर्दिनी कहलाई |
बची हुई असुर सेना भाग गयी या मारी गयी और देवताओं गन्धर्वों ने देवी की विनयपूर्वक महादुर्गा जी की स्तुति की और कई वरदान प्राप्त किये ।
सारांश
- यहा हमने जाना दुर्गा सप्तशती का अध्याय 2 वह 3 जिसमे कैसे माँ महिषासुर का वध करके महिषासुर मर्दिनी कहलाती है . आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी.
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