दुर्गा सप्तशती अध्याय 13- देवी चरित्र के पाठो का महात्मय
सुरथ और वैश्य को देवी का वरदान
वैश्य नदी के तट पर देवी की मूर्ति मिट्टी से बना कर पुष्प , दीप और हवन आदि से आराधना करने लग गये . पहले तो वे थोडा आहार लिया करते है और माँ की भक्ति और तपस्या में लीन रहते थे पर फिर अपने तप के प्रभाव से उन्होंने निराहार रहना शुरू कर दिया और अपनी तपस्या को भी बढ़ा लिया .
यह तीन साल तक इसी तरह से तप करते रहे और देवी माँ को प्रसन्न करने में सफल रहे ,
देवी माँ ने उन्हें दर्शन दिया और कहा , "हे वैश्य , मैं तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूँ . मांगो तुम मुझसे क्या वरदान चाहते हो "
वैश्य ने माँ से कहा की माँ मुझे अगले जन्म में अखंड राज्य की प्राप्ति करा दे . साथ ही इस जन्म में अतुलित बलशाली देकर शत्रुओ को हरा कर अपना राज्य पुनः हासिल करने का वरदान माँगा .
देवी माँ ने उनकी सभी मांगो को पूर्ण कर दिया और वैश्य फिर से अपने शत्रुओ को हराकर राजा बन गया . पर अब उसका मन सांसारिक सुखो से भर गया था इसलिए उसने माता से माया और धन से परे असीम शांति मांग ली .
माता रानी ने उनसे कहा कि अगले जन्म में वो सूर्य के अंश से जन्म लेकर इस धरती पर सार्वनिक मनु के नाम से विख्यात हो जाओगे .
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