दुर्गा सप्तशती अध्याय : 11
Durga Saptashati Paath 11 देवताओ द्वारा देवी की स्तुति और उनको वरदान प्राप्ति
शुम्भ निशुम्भ के वध के बाद देवराज इंद्र और अन्य देवता कात्यायनी देवी की स्तुति करने लगे | सभी देवताओ को यह अच्छी तरह पता था कि सर्वशक्तिशाली माँ ने उन्हें कितने बड़े संकट से उभारा है .
दुर्गा सप्तशती अध्याय 2 और 3 महिषासुर वध
देवताओ ने स्तुति की , हे माँ जगत धारिणी आप शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली , विश्व की रक्षा करने वाली , बल से परिपूर्ण , मोक्ष दायिनी , विश्व की कारणभूता हो | आपकी सदा ही जय हो | सम्पूर्ण विद्याये आपमें धारण है , आप मंगलदायिनी , कल्याणदायिनी, सर्व सुख दात्री हो | सबसे अग्रणी संकटहरणी जगत माता आपकी जय हो |
इसके साथ साथ देवताओ ने माँ देवी के आयुधो , अस्त्र शस्त्र हाथो में शोभायमान अन्य सभी वस्तुओ की भी प्रशंसा की |
देवी माँ जगत जगदम्बे का प्रसन्न होना और देवताओ को वर मांगने के लिए कहना :
हे देवताओ | बोलो तुम्हे क्या वर चाहिए | जो तुम्हारे मन में है वो तुम मुझसे मांग सकते हो | तुम्हारी वंदना से मेरा दिल अत्यंत प्रसन्न हो चूका है .
देवता बोले : हे सर्वेश्वरी आप बस इसी तरह हम पर आये संकट हरती रहो और अपनी कृपा हम पर बनाये रखो |
देवी बोली : भविष्य में यशोदा के गर्भ से अवतरित होउंगी और पुनः शुम्भ निशुम्भ का मैं वध करुँगी | समय के साथ साथ बहूत से अवतार लेकर में तुम्हारे राज को और अन्य लोको को बचाती रहूंगी |
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सारांश
- तो दोस्तों यहा आपने दुर्गा सप्तशती के अध्याय 11 से जाना कि किस तरह से देवताओ ने माँ जगदम्बे की स्तुति की और माँ ने प्रसन्न होकर देवताओ से क्या कहा . आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी.
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