अनोखा और एकमात्र मेंढक मंदिर – यहा होती है मेंढक की पूजा


भारत में कई ऐसे मंदिर है जहाँ जानवरों की पूजा की जाती है। कुकुरदेव मंदिर में कुत्ते की पूजा तो एक तरफ मत्स्य देवी मंदिर में मछली की पूजा होती है | एक जगह ऐसी है जहा मंदिर का रक्षक एक मगरमच्छ करता है | अब तक हम आपको कई ऐसे मंदिरों के बारे में बता भी चुके है। इसी कड़ी में आज हम आपको बता रहे है भारत के एकमात्र ऐसे मंदिर के बारे में जहां मेंढक की पूजा की जाती है। आइए जानते है कहां है ये मेंढक मंदिर और क्यों की जाती है मेंढक की पूजा ?

kyo mendhak mandir banwaya gya


भारत का एकमात्र मेंढक मंदिर ( Frog Temple) उत्तरप्रदेश के लखीमपुर-खीरी जिले से 10 किमी दुरी पर  ओयल कस्बें में स्तिथ है। बताया जाता है कि ये मंदिर करीब 200 साल पुराना है। मान्‍यता है कि सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया गया था।

मेंढक मंदिर का इतिहास 

इस मंदिर का निर्माण 1755 में राजा बख्त सिंह ने करवाया था . उन्होंने गोसाई सेना को एक बार बुरी तरह हराया था . गोसाई सेना पर जीत के बाद राजा बख्त सिंह ने उनका पूरा खजाना अपने पास रख लिया पर गोसाई सेना ब्राह्मणों की थी और ऐसे में ब्राह्मणों का धन वो अपने राज कोष में नही रख सकते थे .  

उसी समय राजा बख्त का राज्य अकाल की मार स गुजर रहा था , तब एक सिद्ध तांत्रिक ने बताया कि एक शिव मंदिर का निर्माण एक मेंढक की मुर्ति के साथ किया जाए तो राज्यअकाल मुक्त होगा और अच्छी खासी वर्षा होगी . तब उस तांत्रिक के कहने पर इस मंदिर का निर्माण किया गया .

अत: राजा ने उन पैसो से एक भव्य मंदिर का निर्माण करवा दिया . यहा शिवलिंग नर्मदा नदी से लाकर स्थापित किया गया था . 


यह जगह ओयल शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था और यहां के शासक भगवान शिव के उपासक थे। इस कस्बे के बीच मंडूक यंत्र पर आधारित प्राचीन शिव मंदिर भी है।

यह क्षेत्र ग्यारहवीं शताब्‍दी के बाद से 19वीं शताब्‍दी तक चाहमान शासकों के आधीन रहा। चाहमान वंश के राजा बख्श सिंह ने ही इस अद्भुत मंदिर का निर्माण कराया था।

क्यों कहते है  मेंढक मंदिर 

इस मंदिर के शुरुआत में एक पत्थर से बने मेंढक की विशाल मूर्ति है . उसके पीछे भगवान शिव का मंदिर है . ऐसा लगता है कि पूरा मंदिर मेंढ़क की पीठ पर ही बना हुआ है .  यहा का शिवलिंग दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है .  इसके साथ यहा जो नंदी है वो खड़े है , बाकी मंदिर में आपको नंदी विराजमान ही मिलेंगे . 

नंदी प्रतिमा खड़ी है इस मंदिर में


तांत्रिक ने किया मंदिर का वास्तु

मंदिर की वास्तु परिकल्पना कपिला के एक महान तांत्रिक ने की थी। तंत्रवाद में मंडूक तंत्र  पर आधारित इस मंदिर की वास्तु संरचना अपनी विशेष शैली के कारण मनमोह लेती है। मेंढक मंदिर में दीपावली के अलावा महाशिवरात्रि पर भी भक्‍त बड़ी संख्‍या में आते हैं। 

मंडूक तंत्र पर बना मंदिर

तंत्र मंत्र मंदिर 

इस मंदिर में आज भी तांत्रिक लोग आते रहते है और अपनी साधनाए करते है . इसे भारत के तांत्रिको मंदिरों में भी स्थान प्राप्त है . तंत्र के सबसे बड़े देवता शिव को माना गया है . इस मंदिर के शिखर पर आपको नटराज की मूर्ति के साथ एक तांत्रिक चक्र भी देखने को मिलेगा . यह सूर्य की दिशा के घूमता है जो इसे चमत्कारी बनाता है . इसका निर्माण सोने और चांदी से किया गया था और पूरी तरह अर्ध चन्द्र था . 


लेकिन कुछ साल पहले कुछ चोर इसका आधा भाग ले गये . 


मंदिर की हालत खराब 

यह मंदिर अति प्राचीन है और रख रखवाव की कमी के कारण इसकी हालत आज खराब है , इसके दीवारे और सीढिया कमजोर और काली पड़ गयी है . सरकार क इस तरफ ध्यान देकर इसका जीर्णोद्धार करवाना चाहिए . यह मंदिर प्राचीन धरोहर है . 


 अचरज में डालता हूँ कुंवा

मंदिर की पहली मंजिल पर आपको एक कुंवा देखने को मिलेगा , इतनी ऊंचाई पर होने के कारण यह भी लोगो को हैरान कर देता है . कहते है कि यह भी त्रंत्र विद्या से ही संभव हुआ है . इस कुंवे में माँ नर्मदा नदी का ही पानी है . सबसे कमाल की बात यह है कि यह कुंवा कभी नहीं सूखता है . इस कुवे क पानी से ही यहां स्थापित शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है .

mandir ka kunwa


कैसे पहुंचे

लखीमपुर से ओयल 11 किमी दूर है। यहां जाने के लिए आपको पहले लखीमपुर आना होगा। आप बस या टैक्सी करके लखीमपुर से ओयल जा सकते हैं। यदि आप फ्लाइट से आना चाहें तो यहां से सबसे नजदीकी एयरपोर्ट लखनऊ 135 किमी दूर है। यहां से आपको UPSRTC की बसें लखीमपुर के लिए मिल जाएगी।

Conclusion (निष्कर्ष )

तो दोस्तों हमने आपको इस आर्टिकल में बताया कि भारत का एकमात्र मेंढक मंदिर कहाँ है और इसका क्या इतिहास है . क्यों इसे एक तांत्रिक मंदिर कहते है और साथ ही इस मेंढ़क मंदिर से जुडे चमत्कार भी बताये है

आशा करता हूँ की आपको यह आर्टिकल ज्ञानवर्धक जरुर लगा होगा  . 

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