लकवे का इलाज करता एक मंदिर – बुटाटी धाम नागौर राजस्थान
Butati Dham For Paralysis Treatment . राजस्थान की धरती पर के ऐसा मंदिर भी है जहा देवी देवता आशीष ही नही बल्कि लकवे ( Paralysis ) के रोगी को इस रोग से मुक्त कर देते है | इस मंदिर में दूर दूर से लकवे के मरीज अपनों के सहारे आते है पर जाते है खुद के सहारे | कलियुग में ऐसे चमत्कार को नमन है | जहा विज्ञान (Science ) फैल हो जाता है और चमत्कार (Miracle) रंग लाता है तो ईश्वर में आस्था और अधिक बढ़ जाती है |
कहते है चमत्कार को नमस्कार , ऐसा ही एक धाम है जो अपने विशेष चमत्कार के लिए जाना जाता है . भक्त इसे कहते है बूटाटी धाम , लकवे का ईलाज एक वो भी परिक्रमा और यहा की पवित्र भस्म से
इसी कड़ी में जानते है इस मंदिर की महिमा जो पैरालायसिस (लकवे ) को सही करती है |
कैसे जाए बूटाटी धाम मंदिर
राजस्थान में नागौर से चालीस किलोमीटर दूर अजमेर- नागौर रोड पर डेगाना तहसील में कुचेरा क़स्बे के पास है बुटाटी धाम जिसे जहाँ चतुरदास जी महाराज के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है | यह प्रसिद्द है लकवे से पीड़ित व्यक्तियों का इलाज ( Treatment ) करने में | इस मंदिर का नाम पुरे भारत में प्रसिद्ध है और लकवाग्रस्त लोगो को मिलने वाले आराम के कारण पुरे देश से यहा लोगो का आना जाना है . इस मंदिर में चमत्कारी रूप से निस्वार्थ भाव से लकवे का इलाज होता है .
निकतम रेलवे स्टेशन :- इस मंदिर के पास निकटतम रेलवे स्टेशन 45 किमी की दुरी मेड़ता में है . मेड़ता जयपुर जोधपुर के बीच एक रेलवे स्टेशन है . यहा उतरकर आप बस , जीप या कार द्वारा बुटाटी धाम जा सकते है .
निकतम एअरपोर्ट :- बुटाटी धाम के पास नजदीकी हवाई अड्डा सांगानेर जयपुर का ही है .यहा से आप कार हायर करके बुटाटी धाम आ सकते है . जयपुर से बूटाटी धाम 200 किमी के करीब है . जबकि जोधपुर से 157 किमी की दुरी पर .
परिक्रमा और हवन कुण्ड की भभूति ही है दवा :
इस मंदिर में बीमारी का इलाज ना तो कोई पंडित करता है ना ही कोई वैद या हकिम | बस यहा आपको 7 दिन के लिए मरीज के साथ आना होता है और 7 दिनों तक मंदिर की परिक्रमा लगानी होती है | इसे फेरी देना भी कहते है . उसके बाद हवन कुंड की भभूति लगाये | धीरे धीरे लकवे की बीमारी दूर होने लगती है , हाथ पैर हिलने लगते है , जो लकवे के कारण बोल नही सकते वो भी धीरे धीरे बोलना शुरू कर देते है |
कैसे होता है लकवे का इलाज :
कहते है ५०० साल पहले यहाँ एक महान संत हुए जिनका नाम था चतुरदास जी महाराज | इन्होने घोर तपस्या की और रोगों को मुक्त करने की सिद्धि प्राप्त की | आज भी इनकी शक्ति ही इनके मानवीय कार्य में साथ देती है | जो इनके समाधी की परिक्रमा करते है वो लकवे में राहत पाते है |
रहने और खाने की व्यवस्था : इस मंदिर में इलाज करवाने आये मरीजो और उनके परिजनों के रुकने और खाने की व्यवस्था मंदिर निशुल्क करता है |
दान में आते है प्रबंध के रूपये :
मंदिर की इसी कीर्ति और महिमा देखकर भक्त दान भी करते है और यह पैसा जन सेवा में ही लगाया जाता है |
बुटाटी धाम से जुड़ी जरुरी बातें
♦ बुटाटी धाम में ज्यादातर लोग लकवा ग्रस्त आते है , उनके साथ उन्हें परिजन लोग आते है . उन्हें मंदिर परिसर में 7 दिन और 7 रात रुकना होता है . उनका खाना पीना रहना सब फ्री होता है . यदि कोई अपना इच्छा से दान देना चाहे तो कर सकता है .
♦ यहा बनने वाला भोजन ज्यादातर चुल्ले में ही बनाया जाता है .
♦ यहा सबसे बड़ा दिन एकादशी तिथि का माना जाता है . इस दिन यहा भक्तो का मेला ही भरता है . कहते है कि एकादशी की आरती देखना बहुत ही महत्व वाली होती है .
♦ यहा अधिकतम आप 7 दिन तक रह सकते है उसके बाद आपको जाना पड़ेगा क्योकि यहा भक्तो की भीड़ बहुत आती है .
♦ परिसर में आपको बहुत सी व्हील चेयर मिल जाएगी क्योकि यह लकवे वाले लोग बहुत आते है .
♦ यहा दो बार मुख्य आरती होती है सुबह 5 बजे और शाम को 6 बजे . इस आरती में लकवा ग्रस्त आदमी और उनके परिजनों को जरुर शामिल होना चाहिए .
♦ यहा आने वाले ज्यादातर लोगो को चमत्कारी रूप से लकवे की बीमारी में आराम मिला है .
♦ यहा जब आप किसी लकवा ग्रस्त मरीज के साथ पहली बार आते है तो आपको यहा के ऑफिस से उनके नाम पर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा , आपको एक पर्ची दे दी जाएगी और आप फिर यहा 7 दिन रुक सकते है .
♦ बुटाटी धाम मंदिर की व्यवस्था का कार्यभार यहा की मंदिर कमिटी ( संत श्री चतुरदास जी महाराज मंदिर विकास समिति ) करती है .
♦ यहा होने वाली आरती के समय बड़े बड़े हाल में बैठकर भक्त आरती का आनंद लेते है , आरती के समय हाल पूरी तरह भर जाते है .
♦
कौन थे चतुरदास जी महाराज
बुटाटी धाम में सबसे बड़ी शक्ति चतुरदास जी महाराज की बताई जाती है . यहा 600 साल पहले एक बहुत ही अच्छे दिल और परोपकारी संत हुए थे जिनका नाम था चतुरदास जी महाराज . उनके पास 500 बीघा जमीन थी जिसे उन्होंने समाज के लिए दान कर दी और फिर खुद आरोग्य और रोग निधान की तपस्या में लीन हो गये . उसके बाद उन्होंने यही समाधी ले ली .
कहते है कि उनकी इच्छा थी कि लोग स्वास्थ्य लाभ को प्राप्त करे . आज भी उनकी शक्ति इस मंदिर में है और लोगो को लकवे से उभारती है .
मंदिर परिसर में उनके चरण चिन्ह बने हुए है जिनकी पूजा की जाती है . इन्ही चरण चिन्हों के निचे बाबा चतुरदास जी ने समाधी ली थी .
मंदिर में बाहर एक धुना है जो हर समय जलता है .
Contact Number संपर्क करे
094131 71739
पांडवकालीन लाखामंडल शिवलिंग जो मरे हुए को कर दे जीवित
हजारो शिवलिंग का अभिषेक करने वाली नदी
तिरुपति बालाजी मंदिर के अनोखे राज जो हैरान कर देते है
मेहंदीपुर बालाजी धाम की वो 10 ख़ास बातें जो बनाती है इसे चमत्कारी
Post a Comment