सरयू नदी की महिमा और महत्व
Holy River Sarayu in Ayodhya Ram Nagri
क्या आप जानते है कि सरयू नदी का निर्माण किस तरह हुआ ? क्यों सरयू नदी के किनारे राम नगरी अयोध्या बसी हुई है . सरयू का क्या इतिहास है ?
आज हम आपको महा देवी तुल्य नदी माँ सरयू के बारे में विस्तार से बता पाएंगे जिससे कि आप इस नदी के महत्व और महिमा को समझ सके .
भारत की सबसे प्राचीन नदियों में उत्तर प्रदेश के अयोध्या धाम के किनारे बहने वाली नदी के रूप में सरयू को देखा जाता है। रामायण के अनुसार इसी नदी में श्री राम और लक्ष्मण ने जल समाधी ली थी । जैसे हरिद्वार में माँ गंगा की महिमा है वैसे ही अयोध्या धाम में सरयू नही को पूजा जाता है | इस नदी का नाम भी भारत की सबसे पवित्र नदियों में लिया जाता है .
इस नदी को ही घाघरा सरजू , रामप्रिया, देविका तथा शारदा नाम से भी जाना जाता है जिसका उद्गम स्थल हिमालय के कैलाश मानसरोवर से माना जाता है पर किसी अज्ञात कारण से ये आगे लुप्त हो जाती है उसके बाद यह यह उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले के सिंगाही के जंगल से निकल कर मैदानी भाग में बहती है ।
उत्तर प्रदेश में यह नदी फैजाबाद तथा बस्ती जिले की सीमा निर्धारित करती हैं। इस नदी की सहायक नदी
यह बलिया और छपरा के बीच गंगा नदी में मिल जाती हैं। हिमालय से निकल कर जब यह नेपाल से बहती है तो इसे काली नदी के नाम से पुकारा जाता है ।। मैंदान पर उतरने पर कही इसे करनाली तो कही इसे घाघरा नदी कहा जाता है | जब यह अयोध्या में बहती है तो इसे सरयू के नाम से जाना जाता है । बौद्ध ग्रंथों में इसे सरभ के नाम से पुकारा गया है।
इस नदी की कुल लम्बाई मैदानी भाग में 160 किमी की है | अरिकावती है जिसे राप्ती भी कहा जाता है।
गोदावरी नदी की पौराणिक कहानी और महत्व
सरयू नदी के जन्म की पौराणिक कथा
Saryu Nadi Ki Pouranik Kahani - Story of Saryu River .
पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार सरयू नदी का जन्म भगवान विष्णु के नेत्रों के अश्रु से हुआ है । प्राचीनकाल में शंकासुर नाम के दैत्य ने वेद को चुराकर समुद्र में डाल दिया और स्वयं वहां छिप गया था।
इसके कारण अधर्म का प्रभाव बढ़ गया और धर्म की हानि होने लगी । तब भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए मत्स्य रूप धारण कर उस दैत्य का संहार किया और फिर से उन वेदों को ब्रह्मा जी को दिया । धर्म की इस जीत पर भगवान विष्णु की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गये थे । ब्रह्मा ने अपने कमंडल में उन आंसुओ को भरकर कैलाश मानसरोवर में सुरक्षित कर लिया।
फिर एक बार इस कमंडल के जल को वैवस्वत महाराज ने बाण के प्रहार से मानसरोवर से बाहर निकाला जिससे जो नदी प्रकट हुई वही सरयू नदी कहलाई। बाद में भगीरथ ने अपनी घोर तपस्या से स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाकर अपने पूर्वजों के उद्धार करवाया और गंगा व सरयू का संगम करवाया।
सरयू स्नान की महानता
जो भी भक्त अयोध्या धाम में श्री राम लल्ला के दर्शन करने आते है उन्हेंसबसे पहले माँ सरयू केजल में स्नान करना चाहिए फिर सरयू नदी की पूजा अर्चना करनी चाहिए उसके बाद हनुमानगढ़ी मंदिर में जाकर हनुमान जी का आशीर्वाद लेना चाहिए फिर श्री राम दरबार के दर्शन करने चाहिए |
मान्यता है कि सरयू में स्नान से जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। अयोध्या में इस नदी के तट पर बहुत से घाट बने हुए है जहा पंडित लोग विभिन्न पूजा कर्म करवाते है |
पूजा में काम में नही लिया जाता इस नदी का जल
यह जानकर आप हैरान हो जायेंगे कि गंगा की तरह पवित्र होने के बाद भी इस नदी का जल कभी पूजा पाठ में काम में नही लिया जाता है | इसके पीछे भगवान शिवजी का इस नदी को श्राप है | उत्तर रामायण के अनुसार जब श्री राम ने सरयू नदी में जल समाधी लेकर अपनी देह को त्याग दिया था तब इस बात से शिवजी बहुत ही क्रोधित हो गये और उन्होंने सरयू नदी को श्राप दे दिया कि तुम्हारा जल अब पूजा पाठ में काम में नही लिया जायेगा , हलाकि तुम्हारे अन्दर स्नान करने से लोगो के पाप जरुर कटेंगे |
सारांश
- तो दोस्तों अयोध्या में बहने वाली सरयू नदी की महिमा और महत्व को बताया है . आशा करता हूँ की यह पोस्ट आपको अच्छी लगी होगी .
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