हिन्दू धार्मिक पुराणों से जाने चार युग
Hindi Dharm Me Char Yug Kounse Hai .
हमारे सनातन धर्म के धर्मग्रंथो में सृष्टि के संपूर्ण काल को चार भागों में बाँटा गया है | सतयुग सबसे पहला तो कलियुग को अंतिम युग बताया गया है | अभी कलियुग समय शुरू हो चूका है | जब यह कलियुग समय की अवधि पूरी हो जाएगी तो सम्पूर्ण पृथ्वी जल मग्न हो जाएगी और जीवन का अंत हो जायेगा . उसके बाद फिर से नयी पृथ्वी का जन्म होगा और फिर से सतयुग की शुरुआत होगी .
चतुर्युग - चारो युगों के चक्र को मिलाकर चतुर्युग कहते हैं.
एक तिथि वह समय होता है, जिसमें सूर्य और चंद्र के बीच का देशांतरीय कोण बारह अंश बढ़ जाता है। तिथियाँ दिन में किसी भी समय आरम्भ हो सकती हैं और इनकी अवधि उन्नीस से छब्बीस घंटे तक हो सकती है।
समय का चक्र और नामावली
पंद्रह तिथियों का एक पक्ष या पखवाड़ा माना गया है। शुक्ल और कृष्ण पक्ष मिलाकर दो पक्ष का एक मास। फिर दो मास की एक ऋतु और इस तरह तीन ऋतुएँ मिलकर एक अयन बनता है और दो अयन यानी उत्तरायन और दक्षिणायन। इस तरह दो अयनों का एक वर्ष पूरा होता है।
15 मानव दिवस एक पितृ दिवस कहलाता है यही एक पक्ष है। 30 पितृ दिवस का एक पितृ मास कहलाता है। 12 पितृ मास का एक पितृ वर्ष। यानी पितरों का जीवनकाल 100 का माना गया है तो इस मान से 1500 मानव वर्ष हुए।
और इसी तरह पितरों के एक मास से कुछ दिन कम यानी मानव के एक वर्ष का देवताओं का एक दिव्य दिवस होता है, जिसमें दो अयन होते हैं पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। तीस दिव्य दिवसों का एक दिव्य मास। बारह दिव्य मासों का एक दिव्य वर्ष कहलाता है।
पढ़े : मकर संक्रांति का महत्व
(1) 4,800 दिव्य वर्ष अर्थात एक कृत युग (सतयुग)। मानव वर्ष के मान से 1728000 वर्ष।
(2) 3,600 दिव्य वर्ष अर्थात एक त्रेता युग। मानव वर्ष के मान से 1296000 वर्ष।
(3) 2,400 दिव्य वर्ष अर्थात एक द्वापर युग। मानव वर्ष के मान से 864000 वर्ष।
(4) 1,200 दिव्य वर्ष अर्थात एक कलियुग । मानव वर्ष के 432000 वर्ष।
12000 दिव्य वर्ष अर्थात 4 युग अर्थात एक महायुग जिसे दिव्य युग भी कहते हैं।
सतयुग : यह पहला युग माना जाता है और इसका दूसरा नाम कृतयुग भी है | इस युग की शुरुआत अक्षय तृतीया पर्व से हुई है | यह युग सबसे पावन और पाप रहित था | इसमे भगवान विष्णु के अवतार जो हुए वे थे , मत्स्य अवतार , कूर्म अवतार, वराह अवतार और नृसिंह अवतार | लोग अति दीर्घ आयु वाले होते थे। ज्ञान-ध्यान और तप का प्राधान्य था | इसे 4800 दिव्य वर्षो का माना गया है |
त्रेतायुग : त्रेतायुग को 3600 दिव्य वर्ष का माना गया है। इस युग का आरम्भ कार्तिक शुक्ल नवमी से शुरू हुआ था | यह काल भगवान राम के विष्णुधाम जाने से समाप्त होता है।
द्वापर : द्वापर मानवकाल के तृतीय युग को कहते हैं। यह काल कृष्ण के देहान्त से समाप्त होता है। इसमे मुख्यत महाभारत हुई थी |
कलियुग : कलियुग चौथा और अंतिम युग है। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ था। कृष्ण का इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात देहान्त हुआ, तभी से कलियुग का आरम्भ माना जाता है। कलियुग में विष्णु का कल्कि अवतार और गणेश जी का धूम्रवर्ण अवतार होना है | चारो युगों में कलियुग को सबसे अधर्मी माना गया है . इस युग में ही सबसे ज्यादा पाप होंगे और इसी पाप का भार जब धरती सह नही पायेगी तो यह धरती पर जीवन खत्म हो जायेगा .
ऐसा भी कहा गया है कि कलियुग में मनुष्य धर्म से दूर और अधर्म के करीब होगा पर जो व्यक्ति धर्म की राह पर रहेगा उसका उद्धार निश्चित है . कलियुग में राम नाम का सुमिरन करने वाला व्यक्ति हजारो सालो की तपस्या के बराबर पूण्य को प्राप्त करेगा .
सारांश
- इस हमारे हिन्दू धर्म में चार युग के नाम कौनसे बताये है और इन युगों में क्या क्या महत्त्वपूर्ण हुआ था , इसकी जानकारी हमने आपको इस आर्टिकल के माध्यम से दी है . आशा करता हूँ कि यह पोस्ट आपको अच्छी लगी होगी .
गाय का हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्व है , कैसे आइये जाने
पुराणों से जाने सबसे बड़े दानवीर कौन है
किन चीजो का दान करने से मिलता है सबसे ज्यादा पूण्य
Post a Comment