क्यों मनाया जाता है गणगौर का त्योहार
Why We Celebrate Gangour Festival in memories of Shiv Parvati
यह त्योहार शिव पार्वती की पूजा के रूप में महिलायों द्वारा समूह में धूम धाम से मनाया जाता है | इसका मुख्य दिन चैत्र शुक्ल तृतीया का है जो चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन होता है | गण यहा शिव जी के लिए और गौर शब्द माँ पार्वती जी के लिए काम में लिया गया है | सुहागिन औरते सुन्दर श्रंगार और हाथो में मेहंदी लगाकर सजती है |
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क्यों की जाती है गणगौर पर पूजा
शिव महापुराण में बताया गया है की माँ पार्वती जी ने शिव जी को अपने पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी | तब शिवजी ने पार्वती जी को दर्शन देकर उन्हें अपने पत्नी रूप में स्वीकार किया | यह पर्व मुख्य रूप से महिलायों और लडकियों का पर्व है जो अपने दाम्पत्य जीवन में खुशियाँ पाने के लिए गणगौर का पर्व मनाती है . यहा गणगौर माँ पार्वती को खुश करने के लिए मनाया जाता है .
ईसर और गौर की पूजा का पर्व
ईसर या गण शिव जी को कहा जाता है और गौर पार्वती को . दोनों को मिलकर बन गया गणगौर .
कई दिन का यह त्योहार
होलिका दहन के दुसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक यानी की 18 दिन तक यह पर्व मनाया जाता है . कहते है माँ पार्वती होली के दुसरे दिन पीहर जाती है और गणगौर की समाप्ति वाले दिन शिव जी उन्हें पीहर जाकर लाते है .
गणगौर एक दिन का पर्व नही बल्कि १८ दिनों तक लगातार शिव पार्वती पूजा का त्योहार है | नवविवाहित दुल्हन शादी के बाद अपनी पहली गणगौर अपने पीहर आकर मनाती है | मां गणगौर और ईशरजी का पूजन स्त्रियों के लिए पति प्रेम और सौभाग्य बढ़ाने वाला माना जाता है | धुब और पानी के छीटे देते देते महिलाये गोर गोर गोमती गीत समूह में गाती है | गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं।
राजस्थान में मुख्य रूप से
यह त्योहार मुख्य रूप से राजस्थान और इस राज्य के सीमावर्ती जगह पर बड़े रूप में मनाया जाता है | शादी के बाद दुल्हन अपनी पहली गणगौर अपने पीहर में आकर बनाती है . गणगौर के 16 दिन पहले आकर ही उसे हर दिन इस पर्व में आस पड़ोस की महिलाओ और कन्याओ के साथ हर दिन गणगौर की पूजा करनी होती है .
गौर गौर गोमती गीत क्या है ?
गौर गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती
पार्वती का आला-गीला , गौर का सोना का टीका
टीका दे , टमका दे , बाला रानी बरत करयो
करता करता आस आयो वास आयो
खेरे खांडे लाडू आयो , लाडू ले बीरा ने दियो
बीरो ले मने पाल दी , पाल को मै बरत करयो
सन मन सोला , सात कचौला , ईशर गौरा दोन्यू जोड़ा
जोड़ ज्वारा , गेंहू ग्यारा , राण्या पूजे राज ने , म्हे पूजा सुहाग ने
राण्या को राज बढ़तो जाए , म्हाको सुहाग बढ़तो जाय ,
कीड़ी- कीड़ी , कीड़ी ले , कीड़ी थारी जात है , जात है गुजरात है ,
गुजरात्यां को पाणी , दे दे थाम्बा ताणी
ताणी में सिंघोड़ा , बाड़ी में भिजोड़ा
म्हारो भाई एम्ल्यो खेमल्यो , सेमल्यो सिंघाड़ा ल्यो
लाडू ल्यो , पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्योझर
झरती जलेबी ल्यो , हर-हरी दूब ल्यो गणगौर पूज ल्यो
इस तरह सोलह बार बोल कर आखिरी में बोलें : एक-लो , दो-लो ……..सोलह-लो।
गणगौर के पहले आता है सिंजारा
जिन कन्याओ की सगाई हो चुकी है , उनके होने वाले ससुराल से उनके लिए मिठाई कपडे और गहने भेजे जाते है . साथ ही जिन कन्याओ का विवाह हो चूका है उनके पीहर वाले उन्हें मिठाई और रुपए भेजते है .
इसे राजस्थान में सिंजारा कहते है . यह गणगौर पर्व के एक दिन पहले आता है .
जयपुर में निकलती है गणगौर की सवारी ?
जयपुर में हर साल गणगौर के अवसर पर शहर में धूम धाम से गणगौर की सवारी निकाली जाती है . यह प्रथा राजा महाराजाओ के समय से आज भी चली आ रही है . पुरे शहर से लोग गणगौर की सवारी देखने आते है .
बैंड बाजा हाथी घोड़े के साथ नाचते कूदते यह यात्रा निकाली जाती है .
Conclusion (निष्कर्ष )
तो दोस्तों इस लेख के माध्यम से आपने जाना कि गणगौर पर्व क्या होता है और इसे कैसे मनाया जाता है . गणगौर में किस देव देवी की पूजा अर्चना की जाती है .
आशा करता हूँ यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा होगा .
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