दान के प्रकार – कब और कैसे करे दान
भारतीय संस्कृति मे दान का महत्व बताया गया है हमारे यहाँ जप तप दान यज्ञ का बड़ा भारी प्रभाव है। दान का अर्थ है देना , और वो भी उसे जिसे उसकी जरुरत हो | भूखे को रोटी , नंगे को कपडे , प्यासे को पानी | यह भी ध्यान रखे की दान करते समय क्या नियम है | मनुष्य का किया गया दान उसके बुरे समय में उसका साथ देकर फिर से अच्छा समय लाता है | कहते है ना दिया लिया ही काम आता है |आइये शास्त्रों से जाने की दान के कितने प्रकार है |
दान के समय और प्रकार !!
(1) नित्य दान – जो प्राणी नित्य सुबह उठ कर अपने नित्या कर्म में देवता के ही एक स्वरूप उगते सूरज को जल अर्पित कर दे उसे ढेर सारा पुण्य मिलता है। उस समय जो स्नान करता है, देवता और पितर की पूजा करता है, अपनी क्षमता के अनुसार अन्न, पानी, फल, फूल, कपड़े, पान, आभूषण, सोने का दान करता है, उसके फल असीम है। कोई भी दिन दान से मुक्त नहीं होना चाहिए। ऐसे दान को नित्य दान कहते है |
(2) नैमित्तिक दान – जो दान स्थिति,अवसर और समय अनुसार दान किया हो वो नैमित्तिक दान कहलाता हैं। अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी, संक्रांति, माघ, अषाढ़, वैशाख और कार्तिक पूर्णिमा, सोमवती अमावस्या, युग तिथि, , अश्विन कृष्ण त्रयोदशी, व्यतिपात और वैध्रिती नामक योग, पिता की मृत्यु तिथि आदि को नैमित्तिक समय दान के लिए कहा जाता है।
(3) काम्या दान – जो दान कामना की पूर्ति करे उस दान को काम्य दान कहा जाता है| कई लोग ऐसे मनोती का दान भी कहते है | जब एक दान व्रत और देवता के नाम पर कुछ इच्छा की पूर्ति के लिए किया जाता है, उसे दान के लिए काम्या दान कहा जाता है, जैसे पुत्र प्राप्ति के लिये दरिद्रो को भोजन करवाना आदि |
दान किस तरह के होते है
1. रक्तदान:– लोगो ने रक्तदान को महादान की संज्ञा दी है | यह ऐसा दान है जो उसी के काम आता है जिसे उसकी जरुरत होती है | यह जीवन देने वाला दान है |
2. औषधीदान – अस्वस्थ व्यक्ति की अवस्था में सुधार लाने के लिए जब चिकित्सा और औषधि का दान किया जाये तो उस श्रेणी में आता है । इसी में आरोग्य दान भी आता है |
3.कन्यादान – यह वधु पक्ष वाले वर पक्ष को अपनी बेटी के रूप में दान करते है | वह बेटी जिसे जन्म से उन्होंने पाला पोसा , शिक्षा संस्कार दिए और फिर दुसरे घर में विवाह कर दिया |
4. अंगदानः- किसी व्यक्ति की जरुरत के लिए जब कोई अपने शरीर के किसी अंग का दान करे तो उसे अंगदान कहा जाता है | जैसे जीवित रहते हुए किडनी का दान करना | मरने के बाद अपने नेत्रों का दान करना |
6. कायादानः- अपने शरीर से परोपकार के कार्य करना व निस्वार्थ कार्य करके पुण्योपार्जन किया जाय, लुले लगंड़े आदि अथवा किसी अनाथ व निराघार बालक को संरक्षण देना। कायादान दपने आप मे एक विषिश्ठ पुण्य है। किसी व्यक्ति के पास धन न हो साधन न हो, बुद्वि या वाचिक शक्ति न हो फिर भी वह षरीर द्वारा दुसरे की सेवा करें।
7.श्रमदानः- श्रम दान प्रायः सामुहिक कार्यो के लिए होता है। श्रमदान से कई तालाब,सड़क बाॅध आदि का निर्माण करके ग्रामीण लोगो ने अपने कर्तव्य व ग्राम धर्म का परिचय दिया है।
8.समयदानः- व्यक्ति अपनी दिन चर्या मे से थोड़ा समय निकाल कर या ग्रीश्मावकाष या अन्य छुट्टीयों मे सत्कार्य के लिए अपना समय दे।
9.अभयदानः– भयभीत प्राणी को अभयदान का फल कभी क्षीण नही होता। इस दान के कारण वह प्राणी अपने भय से मुक्त हो जाता है |
10.क्षमादानः- यह सबसे बड़ी बात है की कोई आपका बुरा करे तो आप उसे क्षमा कर दे |
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