समुन्द्र मंथन की पौराणिक कथा
Samundra Manthan Ki Pouranik Katha Kahani. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार एक बार ऐसा भी समय आया जब दैत्य और देवता मित्र बन गये और दोनों ने मिलकर समुन्द्र मंथन किया और बहुमूल्य चीजो को प्राप्त किया | आइये जानते है इस पौराणिक कथा के बारे में |
एक बार ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्ग और देवताओ के राजा इन्द्र धन और शक्तिहीन हो गये | दूसरी तरह दैत्यराज बलि महाशक्तिशाली | दैत्यों ने तीनो लोको को जीत लिया | दुखी देवता ब्रह्मा जी की शरण में गये और अपने भाग्य और समय को बदलने की विनती करने लगे | ब्रह्मा जी ने उन्हें नारायण हरि के पास जाने की युक्ति बताई |
विष्णु ने बताया देवताओ को सागर मंथन का मार्ग
जब सभी देवता विष्णु के पास गये तो उनकी दशा देखकर भगवान विष्णु ने उन्हें समुन्द्र मंथन की युक्ति बताई | इस कार्य के लिए दैत्यों से मित्रता करने का सुझाव दिया | उन्होंने बताया की इस कार्य से अमृत निकलेगा जिसे तुम सभी को दैत्यों से बचाकर पान करना है | देवता मान गये और उन्होंने दैत्यों को कई लालच देकर सागर को मथने के लिए मना लिया |
इतने बड़े समुन्द्र को मथने के लिए बड़ी बड़ी चीजो और शक्तियों की जरुरत थी | मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी जैसे नागराज को नेति बनाया गया | विष्णु ने बड़े कच्छप का रूप धरकर अपनी पीठ पर मंदराचल को धारण किया | वासुकी नाग ने इस पर्वत को अपने शरीर से लपेटा जिसके सिरे देवताओ ने और दैत्यों ने पकडे | वे बारी बारी से इसे अपनी तरह पुरे जोश और उमंग से खीचने लगे |
सागर से निकले 14 रत्न
सबसे पहले समुन्द्र मंथन से समस्त ब्रहमांड को नष्ट करने की शक्ति रखने वाला हलाहल विष निकला | इसे महादेव ने अपने कंठ में धारण करके सभी को जीवन दान दिया | वे विषधर और नीलकंठ कहलाये | उसी कारण उन्हें दूध और बेलपत्र चढ़ने लगा |
फिर निकली कामधेनु गाय |
अब एक शक्तिशाली उच्चैःश्रवा घोड़ा निकला जिसे दैत्यराज बलि ने अपने पास रख लिया |
इसके बाद ऐरावत हाथी को स्वर्ग के राजा इन्द्र देव ने चुन लिया | हाथी के बाद कौस्तुभमणि निकली जिसे नारायण ने धारण कर लिया |
फिर कल्पवृक्ष और रम्भा नामक अप्सरा निकली जिसे स्वर्ग में जगह दी गयी | फिर धन की देवी लक्ष्मी निकली जिन्होंने विष्णु को अपने पति के रूप में चुन लिया |
अगली थी वारुणी (मदिरा रूपी कन्या ) जिसे दैत्यों ने अपने पास रख लिया |
फिर निकले चन्द्रमा, पारिजात वृक्ष तथा शंख निकले | अंत में जिसका सबको इंतजार था वो अमृत कलश निकला | यह वैद्य धन्वन्तरि के हाथो में था | इसे देखते ही दैत्यों ने अमृत कलश को छीन लिया |
विष्णु ने बनाया मोहिनी रूप और दैत्यों से अमृत कलश बचाया
देवताओ के संकट को तारने वाले भगवान विष्णु ने अति सुन्दर मोहिनी रूप धारण करके दैत्यों से अमृत कलश की रक्षा की | मोहिनी ने दैत्यों को मोहित करके उन्हें विश्वास दिला दिया की वे सभी में समान अमृत कलश बांटेगी | मोहिनी ने देवताओ और दैत्यों को अलग अलग पंक्ति ने बैठा दिया और पहले देवताओ को अमृत पिलाने लगी |
दैत्यों में राहु हुआ अमर
दैत्यों में राहु नाम के दैत्य को मोहिनी पर शक हो गया था | उसने देवता का ही रूप धारण करके देवताओ की पंक्ति में बैठ गया | जैसे ही मोहिनी ने उसे अमृत पिलाया तभी चन्द्र देवता और सूर्य भगवान ने उसे पहचान लिया |
भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उस दैत्य का सिर काट दिया | अमृत का पान करने से सर और धड दोनों अमर हो चुके थे जो राहु और केतु कहलाये और दो ग्रह बन गये | चंद्रमा और सूर्य पर जो ग्रहण बनते है |
सारांश
- देवताओ और दानवो के बीच एक साझा में समुन्द्र को मथा गया (समुन्द्र मंथन ) जिससे कि 14 रत्न प्रकट हुए , इसमे शंख , लक्ष्मी कामधेनु गाय , पारिजात , हलाहल , वारिणी नदी आदि शामिल थी . आशा करते है कि आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी .
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