काशी में श्मशान की राख से खेली जाती है होली
Kashi Me Rakh Se Holi Kyo Kheli Jati Hai . भारत में हिन्दुओ का मुख्य त्यौहार होली भी है | होली के अगले दिन धुलण्डी रंग गुलाल लगाकर मनाई जाती है पर भारत में एक शिव नगरी ऐसी भी है जहा जहा भक्त लोग श्मशान की राख से होली खेलते है | यह शमशान की राख लगाना भी श्मशानवासी शिव के प्रति भक्ति दिखाने का ही एक भाव है |
शिव को श्मशान की भस्म पसंद है | महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में हर सुबह होती है इनकी भस्म आरती |
काशी में खेली जाती है श्मशान की राख से होली :
फाल्गुन महीने के रंगभरी होली के दिन काशी विश्वनाथ और उनकी पत्नी पार्वती का गौना करवाया जाता है | फिर गलियों में निकाली जाती है इनकी पालकी | इसके अगले दिन काशी में माना जाता है मशाननाथ का दिन | इस दिन इनकी पूजा करके मणिकर्णिका घाट पर भक्त एक दुसरे से श्मशान की राख से होली खेलते है और हर हर महादेव के नारे लगाते है |
रंगभरी होली ( धुलण्डी ) के एक दिन बाद खेली जाती है राख से होली
इस दिन मशान नाथ मंदिर में महा आरती आयोजित की जाती है जिसमे औघड़दानी बाबा का गुणगान किया जाता है | भक्तो का मानना है की इस दिन मशान नाथ भक्तो के साथ होली खेलने जरुर आते है फिर खेली जाती है श्मशान की राख से होली |
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काशी में मरना मोक्षदायी है
काशी नगरी शिव की प्रिय नगरियो में से एक है | इसे मोक्ष दायिनी स्थली माना जाता है | शिव संहारक है और इस नगरी में जो व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त करता है उसका जीवन सफल माना जाता है | इस नगरी में मरने वालो की शव यात्रा वाद्य यंत्रों के साथ निकाली जाती है | यहा ऐसी मान्यता है की मणिकर्णिका घाट में जिस व्यक्ति का दाह संस्कार किया जाता है वो शिव धाम को प्राप्त करता है |
राख है जीवन का निचोड़ :
हिन्दू धर्म में मृत शरीर का अंतिम संस्कार उसे चिता पर जलाकर किया जाता है | उसके शरीर से बस राख बनती है |
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सारांश
- शिव की नगरी काशी में एक अनोखी होली खेली जाती है जिसमे रंग गुलाल नही बल्कि श्मशान की राख काम में ली जाती है . राख को यहा सबसे पवित्र माना जाता है क्यों की मरने के बाद यह अंतिम चीज ही व्यक्ति की बचती है . इस आर्टिकल में हमने बताया कि क्यों काशी के घाट पर खेली जाती है भक्तो के द्वारा राख (भस्म ) से होली .
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