षोडशोपचार पूजन विधि में सोलह रूप में होती है पूजा
Shodashopachar Puja ki vidhi .ईश्वर की पूजा के तरीके अलग अलग है पर षोडशोपचार पूजा विधि को सबसे ज्यादा पूर्ण बताया गया है | इसके अलावा एक छोटी विधि पंचोपचार पूजा भी है और माध्यम केटेगरी की दशोपचार पूजा विधि . जब पूजा पाठ में 16 प्रकार से ईश्वर की पूजा अर्चना की जाती है तो उसे षोडशोपचार पूजा विधि कहा जाता है . देवी देवताओ का आवाहन करके उनके सम्मान के लिए उन्हें कई तरह की चीजे अर्पित की जाती है .
आइये जानते है कि षोडशोपचार पूजा विधि में कौन कौनसे से पूजा के भाग है .
वह पूजा की विधि जिसमे 16 प्रकार से देवी देवताओ की पूजा अर्चना की जाती है और जिसे सबसे बड़ी पूजा विधि माना जाता है षोडशोपचार पूजा कहलाती है
षोडशोपचार पूजन विधि का महत्व
1) ध्यान-आवाहन– मंत्रो और भाव द्वारा भगवान का ध्यान किया जाता है |
आवाहन का अर्थ है पास बुलाना । अपने ईष्ट देवता को अपने सम्मुख या पास लाने के लिए आवाहन किया जाता है। हमें आत्मिक बल एवं आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करें, ताकि हम उनका आदरपूर्वक सत्कार करें।
2) आसन-ईष्ट देवता को आदर के साथ प्रार्थना करे की वो आसन पे विराज मान होवे ।
पाद्य– पाद्यं, अर्घ्य दोनों ही सम्मान सूचक है। भगवान के प्रकट होने पर उनके हाथ पावं धुलाकर आचमन कराकर स्नान कराते हैं ।
3) पाद्यं – अपने आराध्य देवी देवता के हाथ और पैर धुलाना |
4) अर्घ्य– पाद्यं, अर्घ्य दोनों ही सम्मान सूचक है। भगवान के प्रकट होने पर उनके हाथ पावं धुलाकर आचमन कराकर स्नान कराते हैं ।
5) आचमन– आचमन यानी मन, कर्म और वचन से शुद्धि आचमन का अर्थ है अंजलि मे जल लेकर पीना, यह शुद्धि के लिए किया जाता है। आचमन तीन बार किया जाता है। इससे मन की शुद्धि होती है।
6) स्नान– ईष्ट देवता, ईश्वर को शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है | एक तरह से यह ईश्वर का स्वागत सत्कार होता है | जल से स्नान के उपरांत भगवान को पंचामृत स्नान कराया जाता है |
7) वस्त्र– ईश्वर को स्नान के बाद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, ऐसा भाव रखा जाता है कि हम ईश्वर को अपने हाथों से वस्त्र अर्पण कर रहे हैं या पहना रहे है, यह ईश्वर की सेवा है |
8) यज्ञोपवीत– यज्ञोपवीत का अर्थ जनेऊ होता है | भगवान को समर्पित किया जाता है। यह देवी को अर्पण नहीं किया जाता है।यह सिर्फ देवताओं को ही अर्पण किया जाता है |
9) गंधाक्षत– अक्षत (अखंडित चावल ), रोली, हल्दी,चन्दन, अबीर,गुलाल,
10) पुष्प– फूल माला (जिस ईश्वर का पूजन हो रहा है उसके पसंद के फूल और उसकी माला )
11)धूप– धूपबत्ती |
12) दीप– दीपक (घी का )
13) नैवेद्य– भगवान को मिठाई का भोग लगाया जाता है इसको ही नैवेद्य कहते हैं ।
14.ताम्बूल, दक्षिणा, जल -आरती – तांबुल का मतलब पान है। यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है। फल के बाद तांबुल समर्पित किया जाता है। ताम्बूल के साथ में पुंगी फल (सुपारी), लौंग और इलायची भी डाली जाती है ।
दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है। भगवान भाव के भूखे हैं। अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है। द्रव्य के रूप में रुपए,स्वर्ण,चांदी कुछ की अर्पित किया जा सकता है।
आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है।
15) मंत्र पुष्पांजलि– मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है। भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बीताएं।
16) प्रदक्षिणा-नमस्कार स्तुति- प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा | पूजा में आरती के बाद आराध्य की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज (clock-wise) करनी चाहिए |
इसके बाद क्षमा याचना की स्तुति करनी चाहिए की यदि हम आदान और अज्ञानी से कुछ भूल हुई हो तो माफ़ करे |
सारांश
- तो सनातन प्रेमियों पूजा पाठ से जुड़े इस आर्टिकल में आपने जाना कि पूजा पाठ की सबसे अच्छी षोडशोपचार पूजन विधि क्या होती है और इससे जुडी मुख्य बाते क्या है . इसमे 16 चरण निम्न है -पाद्य, अर्घ्य, आमचन, स्नान, वस्त्र, उपवस्त्र ( जनेऊ, वस्त्र भेट ) आभूषण, गंध (खुशबु ), पुष्प, धूप, दीपदान , नैवेद्य (भोग ), ताम्बूल, स्तवन पाठ, तर्पण और नमस्कार किया जाता है आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट जरुर पसंद आई होगी .
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