भैरव मंत्र साधना और चमत्कार
भैरव बाबा कलियुग के जाग्रत देवता है | यह शिव का अत्यन्त ही उग्र तथा तेजस्वी स्वरूप है | शिव महापुराण में बताया गया है :-
भैरवः पूर्णरूपो हि शंकरः परात्मनः।मूढ़ास्ते वै न जानन्ति मोहिता शिवमायया।
यदि कोई नास्तिक व्यक्ति है तो उसे भी यह आस्तिक बना दे | मैंने (निर्मल शर्मा जयपुर ) ने इनके कई चमत्कार अपने जीवन में देखे है | भैरव मंत्र साधना से आप हर तरह की सिद्धियों की प्राप्ति कर सकते है | यदि किसी को विश्वास नही तो रात्रि में 11:15 से लेकर 12:15 तक इनके सहस्त्र नाम का पाठ कर ले या फिर लगातार भैरव स्त्रोत को पढ़े | आपका मुख दक्षिण और मन एकाग्र होना चाहिए | आप देखेंगे कोई शक्ति आपके शरीर में प्रवेश कर रही है |
नोट : कमजोर दिल वाले इसे ना करे | पारिवारिक लोग बटुक भैरव की सात्विक रूप से पूजा कर सकते है |
भैरव साधना विधि
आइये जानते है की कैसे करे भैरव नाथ की मंत्र साधना सही विधि से |
- साधना से पहले नहा ले और काले वस्त्र धारण करे |
- काल भैरव का प्रिय रंग काला है इसलिए काले आसन पर विराजित होकर रात्रि में इनकी साधना करे |
- सबसे पहले भैरव की मूर्ति या फोटो उत्तर की तरफ मुख करती हुई लगाये | आपका मुख साधना के समय दक्षिण दिशा में होना चाहिए |
- इन्हे भी काले कपडे के आसन पर विराजमान करे |
- साधना में काले गुलाब जामुन और उड़द की दाल भोग के रूप में काम में ले |
- बलि के रूप में एक चार भाग में कटा हुआ अनार इनके सन्मुख रखे |
- पास में माँ दुर्गा या काली की फोटो को विराजित करे |
- इन मूर्तियों या तस्वीरों को पंचामृत से स्नान कराये फिर शुद्ध जल और मुलायम कपडे से साफ़ करे |
- अब इनके तिलक करे और इत्र छिडके |
- अब इन्हे माला अर्पण करे और भोग चढ़ाये |
- धुप और शुद्ध घी का दीपक जलाये |
- अब काल भैरव को नमन करे और साधना काल में कोई भूल चुक हो जाये तो उसके लिए क्षमा मांग ले |
- अपने चारो तरफ रक्षा कवच बनाये इसके लिए भैरव रक्षा कवच का पाठ करे |
- रुद्राक्ष की माला के साथ दिव्य काल भैरव मंत्र का जप करे | कम से कम पांच या 11 माला जरुर फेरे | पढ़े : कैसे हुई रुद्राक्ष की उत्पति की कहानी
- इसके बाद भैरव जी के 108 नाम पाठ करे |
- यह आपको 21 दिन तक करना है | आगे भी आप करना चाहिए तो इसे बढ़ा सकते है |
- भैरव जी की जल्दी ही आप पर कृपा होगी और आप ग्रह दोष प्रेत बाधा आदि से मुक्त हो जायेंगे
बोलिए भैरव नाथ महाराज की जय
॥ ऊं भ्रं कालभैरवाय फ़ट ॥
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