साई बाबा के परम प्रसिद्ध भक्त कौन थे ?
Most Famous Devotees Of Shirdi Sai Baba .
साई बाबा के आज आपको दुनिया भर में भक्त मिले जायेंगे . फिर भी कुछ ऐसे भाग्यशाली लोग थे जिन्हें साई बाबा का सानिध्य मिला और वे साई की सेवा में लगकर अपना जीवन संवार गये . साईं के साथ साथ साई भक्तो में उनका नाम भी अमर हो गया .
किसी ने साई से बेटे की तरह अपना रिश्ता बनाया तो किसी ने अपने बड़े भाई की तरह . कोई साई का चेला रहा तो कोई साई लीला का साक्षी .
आज हम इस आर्टिकल में जानेंगे साई बाबा के प्रसिद्ध भक्तो के बारे में . Most Famous Devotees of Sai Baba .
शिर्डी के आस पास दर्शनीय स्थल और घुमने की जगहे कौनसी है
बैजाबाई :-
जब साई पहली बार बहुत छोटी उम्र में शिर्डी गाँव में आये तो एक जंगल में नीम के पेड़ के निचे ध्यान मग्न थे .
उनके मुख पर गजब का तेज था . तब सबसे पहले उन्हें बैजाबाई ने ही देखा था .
साई को देखते ही उन्हें मन में उस बालक के लिए अपने पुत्र के समान प्रेम उमड़ पड़ा . उस दिन से ही उस बालक को खाना बैजाबाई खिलाने लगी और मन ही मन उसे अपना पुत्र मानने लगी .
साई कृपा से बैजाबाई को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई , इससे साईं के प्रति उनकी आस्था बहुत ही बड़ी थी .
वे हमेशा सुख दुःख में साईं के साथ खड़ी रही .
श्यामा
श्यामा का पूरा नाम माधवराव देशपांडे था . बाबा की जीवन लीलाओ के ये बहुत अच्छे से साक्षी रहे है .
श्यामा को बाबा साई अपना नंदी कहते थे . यह बाबा के पर्सनल सेक्रेटरी थे जो साई बाबा के कार्यो को क्रियान्वित करते थे .
एक बार बाबा साई ने श्यामा को बताया कि उन दोनों का रिश्ता 72 योनियों से साथ का रहा है .
पेशे से श्यामा एक अध्यापक थे जिनकी स्कूल द्वारकामाई के पास ही थी .
तात्या तोपे पाटिल
तात्या तोपे पाटिल सात साल की उम्र से साई बाबा की शरण में रहा था . साई को वो कभी मामा तो कभी बड़ा भाई कह कर पुकारता था .
अपने बचपन के दिन तात्या ने साई बाबा के साथ बिताये थे . बाबा की पीठ की सवारी करने वाले यह एकमात्र बच्चे थे . 14 साल तक ये बाबा साईं के साथ रमते रहे , जब इनके पिता की मृत्यु हो गयी तो घर की जिम्मेदारी में दबे तात्या को फिर अपने काम धंधो को संभालना पड़ा .
फिर भी तात्या जब भी समय मिलता साई के पास ही समय बिताते थे .
कहते है कि तात्या पर एक घात था जिससे तात्या को बचाने के लिए साई ने खुद के प्राण दे दिए और अपने भक्त की उम्र बढ़ा दी .
नाना चंदोलकर
नाना साहेब चंदोलकर बहुत पढ़े लिखे और भागवत गीता के परम ज्ञानी व्यक्ति थे . यह पेशे से डिप्टी कलेक्टर थे .
1892 में बहुत सारे लोगो से साई बाबा की महिमा सुनकर वो शिर्डी में साईं से मिलने आये . बाबा से मिलने के बाद वे साई के विचारो और लीलाओ से बहुत प्रेरित हुए .
यहा तक की साई बाबा की चमत्कारी उड़ी प्रसादी से उनके परिवार के सदस्यों का कई बार संकट भी टला था .
अब्दुल बाबा
सन 1890 में अब्दुल बाबा शिर्डी साई दिव्य स्वप्न के बाद आये थे . जब शिर्डी में साई बाबा ने इन्हे देखा तो प्यार से कहा देखो मेरा कौवा आ गया है . उसके बाद से अब्दुल बाबा द्वारकामाई में साई बाबा के साथ रहने लग गये .
वे द्वारकामाई की साफ़ सफाई का ध्यान रखते और लेंडी बाग़ में दीपक प्रज्जवलित किया करते थे .
साई बाबा को वो हर रात कुरान की आयते सुनाया करते थे .
बापूसाहेब बूटी
नागपुर के बहुत पैसे वाले व्यक्ति श्रीमान गोपालराव बूटी थे . साई बाबा से जब ये पहली बार मिले थे तब से साई के बहुत बड़े भक्त बन गये थे . साई समाधी के बाद इन्होने वो जगह दी , साई संस्थान की स्थापना की और उस जगह का नाम बूटी वाडा रख दिया .
कालासाहेब दीक्षित
कालासाहेब दीक्षित जी का दुसरा नाम हरि सीताराम जी भी था . इन्हे साई बाबा के परम भक्तो में माना जाता था . साई बाबा का आदेश इनके लिए ईश्वर तुल्य था . साई बाबा इन्हे प्यार से कई बार लंगड़ा काका भी कह कर पुकारते थे .
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दास गणु महाराज
श्री गणपतराव दत्तात्रेय जिन्हें दास गणु महाराज के रूप में जाना जाता है . ये बहुत ही अच्छे कवि और गायक थे . साईं भक्ति में इन्होने बहुत से साईं भजन लिखे है .
पहले दास गणु पुलिस में थे फिर उसके बाद वे साई सेवा में लग गये . दास गणु फिर साई नाम के कीर्तन करके साई की महिमा को पुरे महाराष्ट्र में फैला दिए थे .
हेमादपन्त
हेमादपन्त को किसी परिचित की जरुरत नही है क्योकि साई की महिमा बताने वाले सबसे बड़ी साई पुस्तक " साई सत्चरित्र " इन्ही के द्वारा लिखी गयी है .
हेमादपन्त ने साई बाबा को बहुत ही पास से जाना है और उसने प्रेरणा लेकर , साईं के जीवन चरित्र को अपनी कलम से उभार कर लोगो के सामने प्रस्तुत किया है .
लक्ष्मी बाई
लक्ष्मी बाई शिंदे बचपन से ही साई की संगती में रही है तो वो शुरू से ही साई को जानने लगी थी . यह लड़की भी बाबा साई की निवास स्थली द्वारकामाई की सफाई किया करती थी , बाबा के लिए पीने का पानी लेकर आया करती थी और बाबा की देखभाल करती थी .
रात में बाबा की द्वारकामाई में लक्ष्मी बाई , तात्या और महल्सापति का ही आना जाना था .
बाबा अपनी समाधी से पहले लक्ष्मी बाई के हाथो में 9 सिक्के देकर गये थे जो एक शिष्य के गुणों को बताते है .
महल्सापति
शिर्डी के सबसे प्राचीन मंदिर खंडोबा के पुजारी थे , महल्सापति . साई के आगमन पर सबसे पहले इन्होने ने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर इन्हे "आओ साई " कह कर पुकारा था .
कहते है महल्सापति को अपने इष्ट देवता खंडोबा के दर्शन साई बाबा में होते थे और इसलिए वे साई को भगवान का अवतार समझकर पूजा करते थे .
Conclusion (निष्कर्ष )
दोस्तों इस तरह हिंदी में जाना साई बाबा के परम भक्तो के बारे में जो साई लीला के साक्षी रहे है .
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